Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : ३९ :
(सोनगढ ता. १८–९–७४)
* सोनगढमां पू. गुरुदेव सुख–शांतिमां बिराजमान छे. प्रवचनमां सवारे प्रवचनसार
गा. ४१ चाले छे, ने केवळज्ञाननो खूब खूब महिमा करीने तेनुं उपादेयपणुं प्रसिद्ध
थाय छे; बपोरे कळशटीकामां ९६ मो कळश चाले छे.
* हमणां शिक्षणवर्ग आनंद–उल्लासभर्या वातावरणमां पूर्ण थयो. शिक्षणवर्गमां
चारसो उपरांत जिज्ञासुओए लाभ लीधो हतो.
* श्री महावीर निर्वाणमहोत्सव, तेमज तीर्थरक्षाफंड संबंधमां पण मिटिंगो थई गई; ते
संबंधी विगतवार समाचार हवे पछी आपशुं. आ प्रसंगे अखिल भारतीय दि. जैन
तीर्थक्षेत्र कमिटिना प्रमुखश्री शेठ लालचंद हीराचंद दोशी, तथा कारंजाना ब्र. श्री
माणेकचंदजी चवरे सोनगढ आव्या हता. ने अहींनुं उमंगभर्युं वातावरण देखीने
प्रसन्न थया हता.
* दसलक्षणधर्मनुं महान वीतरागीपर्व सौ एवा आनंदथी ऊजवीए के जैनशासननो
सूर्य १६ कळाए झळकी ऊठे. हालनी परिस्थितिमां बे वात उपर खूब ज ध्यान
आपवुं जरूरी छे–एक तो नानकडा पुस्तको द्वारा वीतरागी साहित्यनो प्रचार (खूब
ज ओछी किंमते) थाय; तथा आपणो एक पण साधर्मी अत्यारनी अतिविकट
आर्थिक परिस्थितिमां कोई रीते मुंझाय नहि–तेम करवुं. मात्र बहारनी शोभामां
धनना ढगला वपराय, तेना करतां साधर्मीनुं संकट दूर करवामां तेनो उपयोग थाय–
ते वधु जरूरी छे.–साचुं सगपण साधर्मीनुं छे.
* ‘अहिंसा परमो धर्म’ तथा इंग्लीश जैनबाळपोथी’ बंने पुस्तको माटे निर्वाण–
महोत्सवनी दिल्हीनी कमिटिना प्रमुखश्री शाहुजीए तेमज मंत्रीश्री भगतरामजी जैने
खूब प्रसन्नता व्यक्त करी छे, ने तेना विशेष प्रचार माटे समाजने प्रेरणा करी छे.
* आत्मधर्मनुं लवाजम आवती सालथी वधारीने रूा. छ करवामां आव्युं छे. (परंतु जे
जिज्ञासुओने राहतनी जरूर होय तेओ रूा. ४ चार मोकलशे तो बाकीनी रकम पूरी
करीने लवाजम भरी देवानी व्यवस्था संपादक तरफथी थई शकशे. आवा लवाजम
संपादक द्वारा आववा जरूरी छे.)
* आत्मधर्ममां मृत्यु समाचार छापवानुं बंध करेल छे; फरी चालु करवा केटलाक