Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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श्री गुरुनो उपकार...ने...जिनवाणीनी सेवा...
आत्मधर्मना गतांकमां संपादकीय–लेख, तेमज पू. बेनश्री–
बेनना मंगल महिमानो परिचय, प्रवचनसारना मंगल–प्रवचनो, वगेरे
वांचीने अनेक मुमुक्षुओए पत्र द्वारा तेमज रूबरू प्रसन्नता व्यक्त करी
छे; पू. गुरुदेवे पण ते वांचीने आत्मधर्म प्रत्ये प्रसन्नता व्यक्त करी हती,
आत्मधर्म उपर गुरुदेवनी हंमेशा प्रसन्नद्रष्टि रही छे; ने तेओश्रीनी
मीठी–मंगल छायामां आत्मधर्म दिन–प्रतिदिन वधुने वधु प्रगति साधी
रह्युं छे. संपादक सहित सर्वे मुमुक्षु वांचको हृदयनी ऊर्मिथी गुरुदेवनो
उपकार माने छे.
वाराणसी–काशीना पीढ पंडित श्री फूलचंदजी–सिद्धान्तशास्त्री–के
जेमनो तत्त्वप्रचारमां महत्वनो फाळो छे, तेओ संपादक उपरना पत्रमां
लखे छे के–“आपने आत्मधर्म द्वारा अपने जीवनकालमें जिनवाणीकी
३१ वर्ष तक अपूर्व सेवा की है ईसके लिये आप समग्र जैनसमाजकी
औरसे कोटिश: धन्यवादके पात्र है
यह कोई अपूर्व पुण्यका उदय है
और विशेष क्षयोपशमका लाभ है जिससे आपको सतत जिनवाणीकी
उपासना करनेका अपूर्व लाभ मिला है
गृहस्थाश्रममें शुभआचारपूर्वक
निवृत्तिके अपूर्व क्षणोंका लाभ विरले भव्य जीवोंको मिलता है यह
आपका महान भाग्य है कि आपने पूज्य गुरुदेवके चरणसान्निध्यमें
रहकर उनके मुखारविंदसे निकली हुई जिनवाणीको सम्यक् प्रकारसे
आत्मसात् कर दूसरोंको लाभ पहुंचानेमें आप समर्थ हुए
आपका
पुनित कर्तव्य हो जाता है कि आगे भी आप ईस मंगलकार्य को प्रारंभ
रखें
यदि आवश्यक समझें तो किसी दूसरे सुपात्र बंधुको अपना
सहयोगी बना लें।।” (ली.) – आपका फूलचन्द्र शास्त्री.
(माननीय पंडितजीए तथा आ पत्रना संपादके अनेक महिना
सुधी साथे रहीने अभिनंदन–ग्रंथ जेवा महान पुस्तकनुं संपादनकार्य कर्युं
छे; तेमज परस्पर खूब वात्सल्यप्रेम धरावे छे.)