Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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अरे, अति दीर्घ एवा आ संसारमां तो चारे गतिमां उत्पात ज
छे, ते सदा दुःखना कलेशथी ज भरेलो छे; जेम अग्नि उपर रहेलुं पाणी
गरमीथी फदफदे छे तेम अज्ञानी जीवो मोहाग्निवडे सेकाता थका
चारगतिना भयंकर दुःखोमां खदखदी रह्या छे.–अति दीर्घ–बहु लांबो
काळ एवा दुःखोमां वीती गयो.–अरे, थई गयुं ते थई गयुं;–पण हवे,
आवा घोर दुःखोथी शीघ्र छोडावनारो जिनोपदेश महा भाग्यथी मने
प्राप्त थयो, ते जिनोपदेशमां चेतनलक्षणरूप मारा स्वतत्त्वना द्रव्य–गुण–
पर्याय परथी अत्यंत भिन्न बताव्या; तो हवे आवो कल्याणकारी
जिनोपदेश पामीने मारे शीघ्र ज उत्कृष्ट प्रयत्नवडे मोहने हणी नांखवो
योग्य छे :
–आम द्रढ निश्चय करीने मुमुक्षुजीव केवा अंर्तमुख उद्यमवडे
मोहनो नाश करीने आनंदमय मोक्षमार्गनी प्राप्ति करे छे? तेनुं अति
सुंदर वर्णन आप आ अंकमां वांचशो...ने आपने पण तेम करवानुं
शूरातन चडशे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २५०० आसो (लवाजम : छ रूपिया) वर्ष ३१ : अंक १२