Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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नवावर्षनुं लवाजम वीर सं. २५००
रूपिया आसो
वर्ष ३१ ई.स. 1974
अंक १२ OCTO.
वीरप्रभुना मोक्षना आ महान उत्सवमां, वीरप्रभुना दरेकेदरेक भक्तने पोताना
आत्महित माटे कंईक करवानी सुंदर भावनाओ जागे, अने महावीरप्रभु प्रत्ये
भक्तिना प्रवाहमां पूर आवे–ए सहज छे.
आ आखुंय वर्ष, अने त्यारपछी पण सदायकाळ, आपणुं जीवन अने जीवननुं
दरेक कार्य एवुं उत्तम होवुं जोईए के आपणने ज एवा गौरव साथे संतोष थाय के
‘हुं मारा भगवाने कहेला मार्गमां शोभी रह्यो छुं; भगवाने बतावेला मार्ग तरफ हुं
आनंदथी जई रह्यो छुं. भगवानना भक्त तरीके शोभे एवुं मारुं जीवन छे.’ बंधुओ,
आवा उत्तम सदाचारयुक्त–ज्ञानयुक्त सुंदर जीवन जीववानी जवाबदारी लेशो तो ज
महावीर भगवाननो साचो उपकार, अने तेमना मोक्षनो साचो उत्सव तमे ऊजवी
शकशो.–एकला पैसानी धामधूमथी साचो उत्सव नहि उजवाय.
आपणा भगवान महावीर केवा छे? (–‘हता’ एम नहि परंतु अत्यारेय
विद्यमान ‘छे’,–ते केवा छे?) पहेलां तेओ संसारमां केवा हता, पछी तेमणे मोक्षमार्ग
कई रीते साध्यो ने अत्यारे मोक्षमां केवा शोभी रह्या छे? ते ओळखवुं जोईए. (तेनुं
संक्षिप्त वर्णन आ अंकमां आप वांचशो.) ते ओळखीने, तेमांथी आपणा जीवनमां
आपणे शुं करवा योग्य छे! तेनो विचार करवो. अत्यारे संसारमां हळहळता पापो
हिंसा–जुठुं–चोरी–सिनेमा–अने पैसाना परिग्रह पाछळनुं पागलपणुं–ए बधा नरकना
एजन्टो सामे एकवर्ष तो बीलकुल न जोशो....एकवर्षमां तेमनो संग छोडीने
वीरप्रभु साथे एवी मित्रता बांधी लेजो के जीवनमां फरी कदी ते कोई पापो तमारी
नजीक पण न आवी शके. अरेरे, पापमां ऊभा रहीने तमे मुक्तिना उत्सवमां केवी
रीते भाग लई शकशो?–वीर पुत्रो! ध्यान राखजो, भगवानना आवा मजाना
उत्सवनो प्रसंग जीवनमां बीजी वार आववानो नथी.–अवसर चुकशो मा.
जय महावीर