Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २५०० आत्मधर्म : ४१ :
आनंदनो महोत्सव
[महावीर–निर्वाणोत्सव संबंधी नाटक]
हमणां दीवाळी आवशे ने महावीर भगवानना २५०० वर्षीय
निर्वाणमहोत्सवनो प्रारंभ थशे. महोत्सव आखुं वर्ष चालशे. भारतना
नाना–मोटा सौ आनंदपूर्वक तेमां भाग लईशुं. भगवानना कल्याणकना
विशेष प्रसंगोए ईन्द्र पण पोतानो महान आनंद नाटक द्वारा व्यक्त करे
छे. जैन बाळको पण नाटक द्वारा पोतानो आनंद व्यक्त करे ने ए रीते
महावीरभगवाननी भक्ति पण करे–ते माटे अहीं एक नानकडुं नाटक
रजु थाय छे. जैनसमाजना कोईपण फिरकाना बाळको के बालिकाओ
संकोच वगर आ नाटक भजवी शकशे. नाटक दीवाळी पहेलांं धनतेरश के
चौदशना रोज करवुं विशेष योग्य छे.
[त्रण वखत महावीर भगवानना जयनादपूर्वक शरूआत]
(सूत्रधार:) आजे महान आनंदनो दिवस छे; आपणा शासनदेव महावीर भगवान
आजे मोक्ष पधार्या छे. जगतमां सौथी महान एवो जैनधर्म, अने महावीर
भगवान जेवा वीतरागी देव, महान भाग्यथी आपणने प्राप्त थया छे. भगवाने
आपणने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग बताव्यो छे, तेथी तेमनी जेटली
भक्ति करीए ने जेटला गुणगान करीए तेटला ओछा छे. आजना मंगल प्रसंगे
एक नानकडा नाटक द्वारा अमे अमारो आनंद अने भक्ति व्यक्त करीए छीए.
[पांच बाळकोए आ अथवा बीजी गमे ते मंगळ स्तुति बोलवी.]
करुं नमन हुं अरिहंत देवने;
करुं नमन हुं सिद्ध भगवंतने;
करुं नमन हुं आचार्य देवने;
करुं नमन हुं उपाध्याय देवने;
करुं नमन हुं साधु भगवंतने;
परमेष्ठी– पंच प्रभु मने बहु ईष्ट छे,