: ४२ : आत्मधर्म : आसो : २५००
[मंगल घंटनाद, वाजां, प्रकाश...]
(१. सखी) : अरे बहेन! आ मंगल घंट शेनां वाग्या? आ मंगल वाजां शेनां वागे
छे? आ दिव्य प्रकाशनो झगझगाट शेनो छे?
(२. सखी) : वाह, बहेन! आजे तो आपणा महावीर भगवानना मोक्षनो महान
दिवस छे. अढीहजार वर्ष पहेलांं पावापुरीथी भगवान मोक्ष पधार्या त्यारे आखा
जगतमां आनंद फेलायो हतो; आजेय मोक्षना आनंदनो उत्सव आखुं जगत उजवी
रह्युं छे. आपणे पण आनंदथी मोक्षदशाने याद करीने तेनी भावना भावीए छीए.
(३. सखी) : वाह बहेन वाह! भगवानना मोक्षने याद करतां कोने आनंद न थाय!
भगवान तो आनंदना ज देनार छे.–
आनंद आनंद आज है, निर्वाण–उत्सव आज है,
आवो भक्तो आवो सर्वे खुशी अपरंपार छे.
आनंद–मंगळ आज है वीरप्रभु जयकार है,
आवो भक्तो गावो सर्वे वीरप्रभु गुणगान है.
(४. सखी) : बहेन, महावीर भगवानना मोक्षनो आटलो बधो महिमा केम हशे?
(५. सखी) मोक्षदशा सौथी ऊंची छे ने पूर्ण आनंदमय छे; एवी दशाने भगवाने प्राप्त
करी, तेथी तेमनो जेटलो महिमा करीए तेटलो ओछो छे. सांभळ! कुंदकुंदस्वामी
तेनो महिमा करतां कहे छे के–