: आसो : २५०० आत्मधर्म : ४३ :
(दरेक गाथा बे वार बोलवी)
अत्यंत आत्मोत्पन्न विषयातीत अनुप अनंत ने
विच्छेदहीन छे सुख अहो! शुद्धोपयोगी सिद्धने.
अशरीर ने अविनाश छे, निर्मळ अतीन्द्रिय शुद्ध छे,
ज्यम लोकअग्रे, सिद्ध, ते रीत जाण सौ संसारीने.
वाह, भगवान आवा मोक्षपदने पाम्या; तो तेमनुं जीवन पण केवुं अद्भुत हशे!
(सखी–६) अरे, एनी शी वात! आपणा भगवानना अद्भुत महिमानी शुं तने
खबर नथी?–जो सांभळ! आपणा भगवान ए कांई राग–द्वेष करवा माटे के
जगतनुं भलुं–बूरुं करवा माटे नहोता अवतर्या, पण ए तो वीतराग थईने भवने
तरवा माटे जन्म्या हता.
(सखी–७) –अने बीजी वात ए छे के भगवान पोते तो वीतराग थईने भवथी तर्या
ने मोक्षमार्गनो उपदेश आपीने आपणने पण भवथी तरवानो उपाय बताव्यो.
तेथी भगवान महान छे.
(सखी–८) हा जुओ, ‘नमुत्थुणं’ मां पण भगवाननी स्तुति करतां कह्युं छे के–
तिन्नाणं...तारयाणं एटले हे भगवान! आप पोते तो भवसमुद्रथी तरनारा छो; ने
आत्मानुं स्वरूप बतावीने अमने पण भवथी तारनारा छो.
–पण हें बहेन! तरवानो उपाय तो जगतना बधा धर्मो बतावे ज छे ने?
(सखी–१) ना बेन! ए वात खोटी छे. संसारथी तरवानो साचो उपाय तो जैन–
धर्ममां आपणा भगवान महावीरे ज बताव्यो छे; ने ते ज एक भवथी तरवानो
साचो मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
(सखी–२) वाह बेन, तुं तो विद्वान लागे छे! भगवाने संसारथी तरवानो उपाय शुं
कह्यो छे? ते बताव.
(सखी–३) सांभळ बेन, बधा जैनशास्त्रोए ए वात स्वीकारी छे के सम्यग्दर्शन–ज्ञान
–चारित्र ते मोक्षमार्ग छे. आपणा भगवान महावीरे सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–
सम्यक्चारित्रनो उपदेश आप्यो छे. एटले, जो आपणे भगवानना मार्गे चालवुं
होय तो आपणे पण सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्रनी आराधना करवी जोईए.
(सखी–४) वाह बेन तमे तो बहु ऊंची वात करी. पण अमने समजाय तेवुं
कंई कहोने?