: ४४ : आत्मधर्म : आसो : २५००
(सखी–५) बहेन, बहु ऊंची वात छे–ए खरुं; पण आपणो धर्म ऊंचो छे एटले तेनी
बधी वात पण ऊंची ज होय ने! ऊंचुं–ऊंचुं एवुं मोक्षपद पामवा माटे तो ऊंचो–
ऊंचो रस्तो ज लेवो जोईए ने!
(सखी–६) बराबर छे; आपणा महावीर भगवाने पण एवो ऊंचो रस्तो लीधो ज
हतो ने!
(सखी–७) हा जुओ, महावीर भगवान छेने, ते जीव पहेलांं तो अज्ञानी अने
मांसाहारी सिंह हतो; पण पछी ते जीव जैनधर्म पाम्यो, तेणे मांसाहार छोडी दीधो
ने मुनिराजना उपदेशथी आत्मस्वरूप ओळखीने तेणे सम्यग्दर्शन प्रगट कर्युं.
पछीना भवोमां साधु थई, वीतरागी चारित्र पाळी केवळज्ञान प्रगट कर्युं ने अंते
पावापुरीथी मोक्ष पधार्या. मोक्षने माटे प्रभुए जेम कर्युं तेम आपणे पण करवुं जोईए.
(सखी–८) वाह, प्रवीणाबेन! तमे तो भगवाननुं आखुं जीवनचरित्र बतावी दीधुं; ते
सांभळीने आनंद थयो छे ने महावीरप्रभुना मार्गे जवानी भावना जागे छे.
(सखी–१) हा, बेन! खरेखर आपणे वीरनां संतान छीए, ने वीरप्रभुना मार्गे ज
आपणे जवानुं छे. आपणे जैन छीए; जैन एटले जिनवरनो संतान.
(बधा साथे–) अमे तो जिनवरनां संतान...जिनवरपंथे विचरशुं....
गातां प्रभुजीनां गुणगान उज्वल आत्माने वरशुं...
अमे तो महावीरनां संतान, महावीर पंथे विचरशुं...
करीने आत्मानी ओळखाण मुक्ति पंथे विचरशुं...
(सखी–२) अहा, महावीर भगवाननो मार्ग केटलो सुंदर छे! केटलो महान छे!
महावीरनो मार्ग एटले वीतरागभाव! महावीरनो मार्ग एटले मुक्तिनो मार्ग. ते
मार्ग आजे आपणने मळ्यो छे, तो चालो! सौ आनंदथी ते मार्गे जईए.
(सखी–३) भगवान मोक्ष पधार्या तेने आजे अढीहजार वर्ष वीती गया, छतां आजे
पण भगवाने देखाडेलो मोक्षमार्ग केवो मजानो शोभी रह्यो छे!
(सखी–४) वाह बेन! खरेखर आपणा महान भाग्य छे. अरे आवो हळहळतो
पापयुग, चारेकोर पापनो पार नहि, डगले ने पगले हिंसा–जुठुं–चोरी– सीनेमाना
भयंकर खोटा संस्कार, ने अन्यायना मार्गे पैसाना परिग्रहनुं गांडपण,–एनी