Atmadharma magazine - Ank 372
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 49 of 53

background image
: ४६ : आत्मधर्म : आसो : २५००
(सखी–१) जरूर बहेन! आजे तो महावीर भगवानना मोक्षनो उत्सव उजववानी
खूब मजा आवी...आत्माने घणो लाभ थयो...आत्मामां जाणे चैतन्य–दीवडा
प्रगट्या ने अपूर्व दीवाळी आवी...साथे आनंद पण लावी!
(सखी–२) अहा, भगवानना निर्वाणनो आवो आनंद–उत्सव हजी तो आपणे
आखुंये वर्ष ऊजववानो छे...आ तो हजी तेनी शरूआत ज छे. आपणने हवे
महावीरनो रंग लाग्यो छे; ते रंग हवे कदी छूटवानो नथी.
(सखी–३) चालो, आपणे सौ एक नानकडा रासवडे भक्ति करीने आपणो आनंद
व्यक्त करीए.
(बधा साथे) हा....चालो...चालो...
[आ अथवा बीजो कोईपण रास गाई शकाय.]
[कुंडाळानी वच्चे एक बाळक धर्मध्वज फरकावतो होय.]
हे......ए.....रंग लाव्यो,.......रंग लाग्यो!
रंग लाग्यो, महावीर! तारो रंग लाग्यो...
तारी भक्ति करवानो मने भाव जाग्यो,
तारी पूजा करवानो मने भाव जाग्यो,
प्रभु सम्यग्दर्शननो भाव जाग्यो..... रंग लाग्यो... महावीर
प्रभु आतमज्ञाननो भाव जाग्यो,
मने भेद विज्ञाननो भाव जाग्यो,
मने साधु थवानो भाव जाग्यो... रंग लाव्यो... महावीर
प्रभु मोक्षे जवानो मने भाव जाग्यो,
प्रभु भवथी तरवानो मने भाव जाग्यो,
प्रभु महावीर थवानो मने भाव जाग्यो... रंग लाग्यो... महावीर
[महावीर भगवानना जयकारपूर्वक नाटक समाप्त.]
[आ नाटकमां उचित फेरफार करीने पण भजवी शको छो. आप आ नाटक
भजवो त्यारे ते संबंधी समाचार संपादक आत्मधर्म (सोनगढ) ने लखी जणावशो.
आ नाटकनी छूटी नकलो पण मळी शकशे.
]