: २ : आत्मधर्म : आसो : २५००
पावापुरीनुं पवित्रधाम हजारो दीपकोना झगमगाटथी आजे अनेरुं शोभी रह्युं
छे. वीरप्रभुना चरणसमीपे बेसीने भारतना हजारो भक्तजनो वीरप्रभुना
मोक्षगमननुं स्मरण करी रह्या छे ने ते पवित्रपदनी भावना भावी रह्या छे. अहा,
भगवान महावीर आजे संसारबंधनथी छूटीने अभूतपूर्व सिद्धपदने पाम्या. अत्यारे
तेओ सिद्धालयमां बिराजी रह्या छे. पावापुरीना जलमंदिरनी उपर–ठेठ उपर लोकाग्रे
प्रभु सिद्धपदमां बिराजी रह्या छे.
केवुं छे ए सिद्धपद? संतोना हृदयमां कोतराई गयेला ए सिद्धपदनुं वर्णन
करतां श्री कुंदकुंदस्वामी कहे छे के :–
अशरीर ने अविनाश छे, निर्मळ अतीन्द्रिय शुद्ध छे;
ज्यम लोक–अगे्र सिद्ध, ते रीत जाण सौ संसारीने.
जेवा जीवो छे सिद्धिगत, तेवा जीवो संसारी छे;
जेथी जनम–मरणादि हीन, ने अष्टगुणसंयुक्त छे.
अहा, सिद्धपद ज्ञानीओने परम वहालुं छे; पोताना आत्माना सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्रवडे ए सिद्धपद पमाय छे. ते महान आनंदरूप छे.
महावीर प्रभु आजना दिवसे आवुं महिमावंत सिद्धपद पाम्या. ए महावीर
केवा हता...ने केवी रीते आवुं मजानुं सिद्धपद पाम्या?–के जेना आनंदनो उत्सव हजारो
दीवडावडे आखुंय भारत आजे पण ऊजवे छे!
आपणा सौनी जेम ए महावीर भगवान पण एक आत्मा छे. आपणी जेम
पहेलां ए आत्मा पण संसारमां हतो. अरे, ए होनहार तीर्थंकरना आत्माए पण
ज्यांसुधी आत्मज्ञान नहोतुं कर्युं त्यां सुधी ते संसारना अनेक भवोमां भम्यो.
* महावीर भगवानना पूर्व भवोनुं कथन *
आत्माना ज्ञान वगर भवचक्रमां भमतां–भमतां भगवाननो जीव एकवार
विदेहक्षेत्रमां पुंडरीकिणी नगरीना मधुवनमां पुरुरवा नामे भीलराजा थयो; त्यारे
सागरसेन नामना मुनिराजने देखीने प्रथम तो मारवा तैयार थयो, पण पछी तेमनी
शान्त मुद्रा अने वीतरागी वचनोथी प्रभावित थईने मांसादिना त्यागनुं व्रत ग्रहण कर्युं.
व्रतना प्रभावे ते भील पहेला स्वर्गनो देव थयो ने पछी त्यांथी
अयोध्यानगरीमां भरतचक्रवर्तीनो पुत्र मरीची थयो; चोवीसमा–अंतिम तीर्थंकरनो ते जीव