Atmadharma magazine - Ank 373
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०१ आत्मधर्म : ७ :
परिणमनार धर्मात्माने, दुनियामां बीजा कोई माने के न माने–तेनी साथे शो संबंध
छे? घणा जीवो ओळखे ने बहुमान करे तेथी कांई पोताने शांति मळी जाय, एम नथी;
तथा दुनियाना जीवो न ओळखे के आदर–सत्कार न करे तेथी कांई पोतानी शांति चाली
जाय–एम नथी. अंतरमां चेतना वाळीने अंदरथी आनंदना निधान खुल्ला कर्यां,
–पर्यायमां ते निधाननुं परिणमन प्रगट्युं त्यां जीव पोते स्वयं आनंदरूप–शांतरसरूप
थयो, तेमां जगतना कोई बीजानी अपेक्षा नथी. अरे, मारी चेतनाने ज्यां राग साथेय
संबंध नथी त्यां पर साथे संबंध केवो? एटले ज्ञानचेतनाथी जुदी एवी
अज्ञानचेतनारूप जे कर्मचेतना के कर्मफळचेतना, तेना कोईपण अंशने धर्मीजीव पोतानी
ज्ञानचेतनामां भेळवतो नथी, तेथी तेनो ते कर्ता के भोक्ता परमार्थे नथी;
ज्ञानचेतनारूपे परिणमतो–परिणमतो ते मोक्षने साधे छे ने सादि अनंतकाळ
आनंदरसने पीए छे.
जेम वडीलो मंगलप्रसंगे आशीर्वाद आपे छे के तमे सुखी थाओ, तेम
एक मजानी वात!
आजथी अढी हजारवर्षपहेलांं आपणी आ भरतभूमिमां
महावीरभगवान साक्षात् अरिहंतपदे बिराजमान हता; ए तो आपणे सौ
जाणीए छीए. –पण बीजी वात जाणीने तमने आनंद थशे, –के ते वखते
एकला महावीरभगवान ज नहि–परंतु एमना जेवा ज सर्वज्ञपरमात्मा
बीजा ७०० (सातसो) अरिहंतभगवंतो पण एक साथे आपणी आ
भरतभूमिमां विचरता हता.
आहा! एक साथे ७०० केवळज्ञानी अरिहंत–जिनेन्द्रभगवंतोनां
दर्शन थाय अने ते पण आपणा आ भारतदेशमां, –मात्र अढीहजार वर्ष
पहेलांं–ए केवी मजानी वात! ‘वाह भई वाह’!
णमो लोए सव्व अरिहंताणं।