: ८ : आत्मधर्म : कारतक : २५०१
आत्मधर्म
बत्रीसमा वर्षनो मंगल प्रारंभ
आत्मधर्मनुं आ ३२ मुं वर्ष एटले महावीरभगवानना अढीहजारवर्षीय
निर्वाणमहोत्सवनुं महान वर्ष! ‘आत्मधर्म’ नुं महान भाग्य के प्रभुना आवा महा मंगल
उत्सवमां आनंदथी भाग लेवानुं ने तेनो प्रचार करवानुं परम सौभाग्य तेने मळ्युं. –ए रीते,
मोक्षमार्गना दातार महावीरप्रभुना परम उपकारने प्रसिद्ध करवानो सोनेरी अवसर मळ्यो.
बंधुओ, (साथे बहेनो पण खरा), अहीं वारंवार कह्युं छे के आ अवसर छे
आत्माने साधवानो. अत्यारे वीरशासनमां श्रीगुरुप्रतापे आत्माने साधवानी सर्व सामग्री
साक्षात् मळी छे, तो हवे आवा उत्तम कार्यमां वार शा माटे लगाडवी? अत्यंत जागृत थईने,
आत्मामां सम्यक् आराधनाना चैतन्यदीवडा प्रगटावो ने वीरमार्गमां प्रवेशी जईने
वीरप्रभुनो महान उत्सव उजवो.
वीरनाथना जिनशासनमां, ‘आत्मधर्म’ द्वारा आपणे सौ एक परिवार जेवा बनी
गया छीए. गमे तेटला दूरना भिन्नभिन्न बे प्रांतना माणसो मळे, –पण जो बंने
आत्मधर्मना वांचनारा होय तो, जाणे अत्यंत निकटना परिचित एक परिवारना ज होय–
एवो परस्पर प्रेम जागी ऊठे छे. आपणो आवो वात्सल्यसंबंध आजकालनो नहि पण ३२
वर्षनो छे. आत्मधर्मना समस्त पाठकोने पोताना सगा भाई–बेनथीये विशेष समजीने
संपादके हंमेशां तेमना प्रत्ये निर्दोष वात्सल्यप्रेम वरसाव्यो छे, ने सामेथी समस्त पाठकोए
पण संपादक प्रत्ये एवी ज लागणीओ दर्शावी छे. धार्मिक वात्सल्यथी समस्त साधर्मीओ
आत्मसाधनामां एकबीजाने पुष्टि आपीए–ने सौ साथे मळीने वीरशासनने एवुं तो
शोभावीए–के वीरनाथ प्रभु आपणने साक्षात् दर्शन आपे.
बालविभागना बाळमित्रो! आ मंगल उत्सव प्रसंगे तमनेय हुं केम भूलुं? तमे सौ
जे उत्साहथी–होंशथी भाग लई रह्या छो ते माटे धन्यवाद! ने हजी खूब–खूब आगळ वधीने
जैनशासननी घणी सेवा करजो. –“जय महावीर.” –ब्र. ह. जैन
आत्मधर्म वार्षिक लवाजम छ रूपिया छे: आपे न भर्युं होय तो तरत मोकलशो.
“आत्मधर्म कार्यालय” सोनगढ ()