Atmadharma magazine - Ank 373
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २५०१ आत्मधर्म : ११ :
–हिंसा करवी ते कारण ने पैसा मळ्‌या ते कार्य,
–एम जो कोई माने तो तेने कारण–कार्यनी भयंकर भूल छे. साचां
कारण–कार्यने ते जाणतो नथी.
तेवी ज रीते–
भाषा बोलाय, हाथ ऊंचो थाय, पुस्तक लेवाय–मुकाय, अक्षर लखाय,–ए बधी
क्रियाओ–के जे आंखथी देखाय छे, ते बधा जडनां कार्यो छे, अचेतन छे; ते अचेतन
पदार्थोनां कार्यो, ने जीव तेनो कर्ता,–एम जे माने छे ते पण, उपरना द्रष्टांतनी जेम ज,
जीव–अजीवना कारण–कार्यसंबंधमां भयंकर भूल करे छे.
भाई, ते अचेतनकार्योमां, कारणपणे जीव होय–एम तने देखातुं तो नथी. शुं
जीवने तें ते अचेतनकार्यो करतां देख्यो? जीवने तें देख्यो तो नथी, तेनुं अस्तित्व केवुं छे
तेने पण तुं जाणतो नथी, तो जीव कर्ता थयो–ए वात तें क््यांथी काढी?
जे वस्तुने तें देखी ज नथी तेना उपर मफतनो खोटो आरोप शा माटे नांखे छे?
जो जीवने तें देख्यो होत तो ते तने चैतन्यस्वरूप ज देखात, ने ते जडनी क्रियानो कर्ता
थाय–एम तुं मानत ज नहीं. माटे देख्या वगर तुं जीव उपर अजीवना कर्तृत्वनुं मिथ्या
आळ न नांख...जो खोटुं आळ नांखीश तो तने मोटुं पाप लागशे. (–जेम राजाए मांस
खावाथी सुख थवानुं मान्युं तेम.)
कोई राजमहेलमां चोरी थई...एक सज्जन माणस राजमहेलथी दूर रहे छे, कदी
राजमहेलमां आव्यो पण नथी. छतां बीजो कोई माणस तेना उपर कलंक नांखे के
चोरीनो कर्ता आ माणस छे!
ते कलंक नांखनारने पूछीए छीए के–हे भाई!
* शुं ते माणसने राजमहेलमां चोरी करतां जोयो हतो? –ना;
* शुं ते माणसने तुं ओळखे छे? –ना;
* शुं ते माणसनी पासे तें चोरीनो माल जोयो छे? –ना.
अरे, दुष्ट! जे माणसने तें चोरी करतां जोयो नथी, जे माणस राजमहेलमां
आव्यो नथी, जे माणसने तुं ओळखतो पण नथी, अने जे माणस पासे चोरीनो