Atmadharma magazine - Ank 373
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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वीर सं. वर्ष ३२
२५०१ अंक: ३७३
मोक्षनो महोत्सव अपूर्व आनंदथी उजवीए.
अहो, वहाला वीरनाथ! ईष्ट एवो आपनो सुंदर
वीतरागमार्ग अमारा महाभाग्ये संतोनी परंपरामां आजे पण
जीवंत वर्ती रह्यो छे. आपना मार्गमां वहेता वीतरागी आनंदनां
वहेणथी अमे पावन थया छीए. समंतभद्रस्वामीए खरूं ज कह्युं
छे के मिथ्यात्वी–चित्त आपने पूजी शकतुं नथी, सम्यक्त्वी ज
आपने पूजे छे. अहा, आपनी सर्वज्ञता, आपनी वीतरागता,
अने शुद्धात्माना आनंदस्वादथी भरेलो आपनो ईष्ट उपदेश,
–एनी महानताने जे ओळखे छे ते तो आपना मार्गे चालवा
मांडे छे, ने तेना चित्तमां आप बिराजो छो, ते ज आपने पूजे
छे. आपनी महानताने जे न ओळखी शके ते आपने क््यांथी
पूजी शके? प्रभो? अमे तो आपने ओळख्या छे, तेथी अमे
आपना पूजारी छीए; ने आपना निर्वाणमार्गमां रहीने,
आपना निर्वाणनो आ अढीहजारवर्षीय महोत्सव अपूर्व
आनंदथी ऊजवीए छीए.
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक ब्र.
हरिलाल जैन
वीर सं. २५०१ कारतक (लवाजम: छ रूपिया) वर्ष ३२: अंक १