Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक लवाजम वीर सं. २५०१
रूपिया मागशर:
वर्ष ३२ ई. स. 1974
अंक DIC.
एकत्वमां सुंदरता....ने...एकत्वमां मोक्षमार्ग
हे आत्मशोधक!
तुं स्वद्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूपे एक सत् छो. तारा द्रव्य–गुण–
पर्यायमां प्रदेशभेद मानीश नहि; तारा द्रव्य–गुण–पर्यायने सर्वथा जुदा
मानीने आत्मानी एकताने खंडित करीश नहीं. द्रव्य–गुण–पर्यायथी
अखंडित एक सत्पणे तुं पोताने अनुभवजे...एवा सत्ना एकत्वमां
कोई अशुद्धता के परभाव नहि रहे, अपूर्णता नहि रहे. एकत्वनी
पूर्णताथी तुं स्वयं शोभी ऊठीश.
जैन–संतोए पोताना एकत्वना अनुभवनुं आ गंभीर रहस्य
मुमुक्षुओने बताव्युं छे. ते रहस्यने समजनार मुमुक्षुजीव एम अनुभवे
छे के ‘हुं मारा आत्माने द्रव्यथी–क्षेत्रथी–काळथी के भावथी खंडित करतो
नथी. सुविशुद्ध एक ज्ञानभावरूपे ज अनुभवुं छुं. ’ आवो एकत्वनो
अनुभव ते ज मोक्षमार्ग छे, ते ज सुंदर छे.
“एकत्वनिश्चयगत समय सर्वत्र सुंदर लोकमां.”