Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 41

background image
: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : १ :
प्रभो सर्वज्ञमहावीर! अढीहजार वर्ष पहेलांंना आपना
निर्वाणमहोत्सवने आजे ताजो करी, अमारा नानकडा ज्ञानमां पण अमे
आपनो साक्षात्कार करीए छीए. अमारुं नानकडुं (मतिश्रुत) ज्ञान पण
ज्यारे आपनी साथे संपर्क करे छे (–अंतर्मुख थईने सर्वज्ञस्वभावमां
जोडाय छे) त्यारे ते पोते पण अतीन्द्रिय थईने एवुं महान थई जाय छे
के सर्वज्ञता पण तेने पोताथी जराय दूर नथी लागती. ते ईन्द्रियोथी पार
थईने अतीन्द्रियसुखना रसमां तरबोळ बने छे.
प्रभो! अमारुं आवुं ज्ञान स्वयमेव आनंदना उत्सवरूप छे.
अमारा ज्ञानमां आप सदाय हाजराहजुर वर्तो छो. आवुं आ ज्ञान
उत्सवपूर्वक निर्वाणनी साधना करतुं–करतुं आनंदमय पगले निर्वाण–
मंदिरमां आपनी समीप आवी रह्युं छे....आपनी पासे पहोंचवाने हवे
झाझी वार नथी. –ब्र. ह. जैन