Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : मागशर : २५०१
भारतभरमां गाजी रह्युं छे महावीरनुं नाम,
आनंद सौ उत्सव उजवे वीरना भक्तो तमाम.
समस्त भारतनो जैनसमाज अभूतपूर्व चेतनाथी जागी ऊठ्यो छे
कोण कहे छे भारतमां आजे महावीर नथी! दिल्हीमां देखो के सोनगढमां,
लालमेदानमां देखो के नानी शेरीओमां देखो, भारतना खूणेखूणामां ज्यां जुओ त्यां
तमने ‘महावीर’ नो अवाज संभळाशे; आज आखोय देश महावीरप्रभुना गुणगानथी
गुंजी रह्यो छे. चालो, आपणे जोईए–सांभळीए के क्यां शुं बनी रह्युं छे! ने केवी
धामधूमथी उत्सव उजवाई रह्यो छे!
देखो,–आ छे पाटनगर दिल्ही! घणुं महान सरघस चाली रह्युं छे. सौथी मोखरे
पंचपरमेष्ठीनो विजय सूचवतो ‘पचरंगी धर्मध्वज’ फरकी रह्यो छे. अने एक पछी एक
ट्रकमां महावीर भगवानना जीवननी केवी मजानी रचनाओ शोभे छे! त्रणसो तो
रचनाओ जैनधर्मना महिमाने प्रसिद्ध करी रही छे. लाखो भक्तजनो आनंदथी
वीरनाथनो जय–जयकार करी रह्या छे, त्यागी वर्गनो मोटो समूह पण आनंदथी
हळीमळीने सरघसमां चाली रह्यो छे ने वीरमार्ग प्रत्ये भक्ति प्रदर्शित करी रह्यो छे.
भजन अने नृत्य मंडळीओ आनंदपूर्वक एकएकथी चडियाता कार्यक्रमो देखाडी रही छे.
चार माईलना रस्तामां लाखो नगरजनो तेमज विदेशी प्रवासीओ आश्चर्यचकित थईने
आ अभूतपूर्व धर्मजुलूस जोई रह्या छे अने एकबीजाने कहे छे के अहा! आवुं भव्य
धार्मिकसरघस दिल्हीमां आजे पहेली ज वार देख्युं. –जाणे महावीर भगवान ज पुन:
पधारीने भारतमां मंगल विहार करी रह्या होय! आखी दिल्ही नगरी पण पोताना
वहाला नाथने पामीने आजे सोळे शणगारथी सुसज्ज बनीने अद्भुत खीली ऊठी छे!
अनेरी शोभा वच्चे, ने अनेरा उत्सव वच्चे चालती वीरप्रभुनी शोभायात्रा सवारे ११
वागे शरू थईने सांजे छ वागे लालकिल्लाना मेदानमां