Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : ३ :
पहोंची महावीरना बधाय भक्तो एमां भाग लई रह्या छे. अरे, पण वच्चे मस्जीद
पासे आ शेनो कोलाहल छे!! –वाह, जुओ तो खरा! आपणा देशना मुस्लीम भाईओ
पण महावीर भगवाननो आ अभूतपूर्व उत्सव देखीने केवा प्रमुदित थई रह्या छे!
तेओ महावीर–सन्देश लखेला झंडा वडे जुलूसनुं स्वागत करी रह्या छे, ने साकर–
ईलायची वहेंची रह्या छे. केटला बधा ऊंट–हाथी–घोडा पण सुसज्जित थईने जुलुसमां
चालता थका पोताने भाग्यशाळी समजी रह्या छे! ने बेन्डवाजां तो मंगल नादथी
आखी नगरीने गजावी रह्या छे. आटला बधा आपणा साधर्मी भाईओने एकसाथे
देखीने तथा महावीरशासननो आवडो मोटो महिमा देखीने केवो आनंद थाय छे!!–
“वाह भाई वाह! धन्य अवसर छे! ’
सरघसमां लाखोनी संख्यामां यात्रीओ भाग लई रह्या छे, –परंतु कोईने ए
याद नथी आवतुं के अमे दिगंबर छीए के श्वेतांबर छीए. बधायने एक ज धून लागी
छे के अमे महावीरना संतान छीए अने महावीरप्रभुनो अढीहजारवर्षीय
निर्वाणमहोत्सव उजवी रह्या छीए. बधा त्यागीओ–नेताओ–विद्वानो तथा जनता
हळीमळीने चाली रह्या छे ने समस्त जनतानो एक ज अवाज छे के ‘कल्याण करवुं
होय तो वीरमार्गमां आवो; महावीरनो वीतरागी सन्देश ज जगतनुं कल्याण करशे. ’
सरघसमां कोई गुजराती, कोई पंजाबी, कोई राजस्थानी, तो कोई मारवाडी,–एम
चित्रविचित्र वेशभूषा होवा छतां बधायना मोंमांथी एक ज भाषा नीकळती हती के
‘भगवान महावीरकी जय! ’
दिल्हीना रामलीला मेदानमां पंचपरमेष्ठीना मार्गने पंचरंगी धर्मध्वज द्वारा
प्रसिद्ध करी रहेला सुसज्जित मंच उपरथी घणी मोटी जाहेरसभानी वच्चे भारतना
वडाप्रधान श्रीमती इंदिराबेन गांधीए आखा राष्ट्र तरफथी भगवान महावीरने
श्रद्धांजलि आपी अने भारतना गौरवशाळी अध्यात्म–वारसानी चर्चा करतां तेमणे
कह्युं के आ एक अजबनी–आश्चर्यकारी वात छे के बीजा देशो पासे खूब ज धनवैभव ने
सुखसुविधाओ होवा छतां पण ते देशो आपणी सामे मीट मांडीने बेठा छे, केमके
आध्यात्मिक क्षेत्रमां तेमने गरीबी अनुभवाय छे. भारते दुनियाने हंमेशां अध्यात्मदान
दीधुं छे. भगवान महावीर महा विजेता (जिन–वर) हता–एम कहीने इंदिराबेने कह्युं
के महा विजेता महावीरे आपणने एम उपदेश्युं छे के एकबीजा अंदरोअंदर लडो नहि;
लडवुं ज होय तो अंदर पोताना दोषनी सामे लडो, बीजानी साथे नहि;