Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : मागशर : २५०१
पोताना अंतरने ढंढोळो!–आ ज भारतीय संस्कृतिनी सौथी महान देन छे. श्रीमती
गांधी उपरांत भारत सरकारना अनेक प्रधानो पण उपस्थित हता. श्रीमती इंदिराबेने
जुस्सादार भाषामां कह्युं के–‘यह सच है कि आज हम आधुनिकता और विज्ञानके युगमें
बह रहे हैं–लेकिन आधुनिकताका मतलब यह नहीं कि हम अपनी प्राचीन
अध्यात्मसंस्कृतिको छोड दे या उनसे किनाराकसी करने लगें, आगळ जतां तेमणे कह्युं के
आपणे शांति मात्र मनुष्योमां नहि पण बधा प्राणीओमां लाववी छे, अने ते शांतिनुं
स्थापन भगवान महावीरे आपेला अहिंसा अने अपरिग्रहना मूळमंत्र वडे ज थई
शके तेम छे. अंतमां फरीने श्रद्धांजलिपूर्वक तेमणे कह्युं के बाळको अने नवी पेढी
भगवान महावीरना सिद्धांतोने पोताना जीवनमां उतारो. (माननीय राष्ट्रपतिजीए
पण पोता तरफथी तेमज समस्त राष्ट्र तरफथी भगवान महावीर–निर्वाणोत्सव माटे
श्रद्धांजलि व्यक्त करी हती.
निर्वाणमहोत्सवना रंगमंचनी शोभा अद्भुत हती. आकाशमां फरकतो पंचरंगी
जैनझंडो जाणे के जनताने पंचपरमेष्ठीना आशीर्वाद ज देतो हतो. जैनसमाजना अग्रिम
नेताओ श्रीमान् शेठ कस्तुरभाई लालभाई तथा श्रीमान् शेठ शांतिप्रसादजी साहुजी
वगेरेए पण पोतानी घणी भावभीनी प्रसन्नता व्यक्त करी हती. आ प्रसंगे समस्त
जैनसमाजनी जे एकता जोवामां आवी ते घणी खुशीनी वात छे. आपणे बधा
एकबीजा साथे हळी–मळीने प्रसन्नताथी वीरगुण गाईए, क््यांय पण कलेश न होय,
अने महावीरना शासनमां सौ पोतपोतानुं आत्महित करे–ए ज भावना; अने ए ज
प्रभु महावीरनो साचो महोत्सव छे:–बधाय जैनोने ते ईष्ट छे.
आपणे दिल्हीनो दरबार जोयो; हवे चालो ईन्दोर तथा अजमेर!
अहा, बंने जग्याए अद्भुत रचना बनी छे. इंदोरमां जैनधर्मचक्र साथे पचास
हजारनो जनसमूह अभूतपूर्व उत्साहथी भाग लईने जैनधर्मना महिमाने प्रसिद्ध करी
रह्यो छे. अजमेरमां निर्वाणधाम पावापुरीनी रचना एवी सुंदर छे के जाणे वीरनाथ
भगवान फरी पधारीने पावापुरीमां धर्मोपदेश दई रह्या होय! समस्त जनता घणा
आनंदथी भाग लई रही छे.
अजमेर, ईन्दोर तथा बीजा अनेक स्थळोए समस्त जैनोए हळीमळीने एक–
साथे जे भव्य धार्मिक सरघस काढ्युं हतुं ते अपूर्व अने अद्वितीय हतुं.
(वधु माटे जुओ पानुं ३०)