Atmadharma magazine - Ank 374
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २५०१ आत्मधर्म : ५ :
द्रव्यस्वभाव अने पर्यायस्वभाव
बंने स्वभाववंत आत्मवस्तु छे
[घणा लोकोने नीचेनो एक प्रश्न ऊठे छे अने तेनुं यथार्थ
समाधान मेळववाने बदले जे–ते रीते तेनुं समाधान करी नाखे
छे. ए प्रश्ननुं यथार्थ समाधान समजवुं खास प्रयोजनभूत
होवाथी, पू. गुरुदेवश्रीए अनेकवार तेनुं स्पष्टीकरण पण कर्युं
छे. तेना उपरथी अहीं ते संबंधी नोंध करवामां आवी छे.
]
प्रश्न:– आत्मानो स्वभाव तो शुद्ध ज्ञायक छे, ते स्वभावमां रागद्वेष–अशुद्धता नथी; तो
पछी पर्यायमां जे अशुद्धता छे ते आवी क््यांथी?
(१) कोई एम कहे छे के आत्माना स्वभावमांथी तो शुद्ध ज पर्याय प्रगटे छे,
पण पछी ते पर्याय परलक्षे अशुद्ध थई जाय छे. प्रगटे त्यारे शुद्ध होय छे
ने पछी परलक्ष कर्युं माटे अशुद्ध थई जाय छे. (कुवामांथी पाणी नीकळे
ने थाळामांनी काळीजीरीना संगथी कडवुं थई जाय तेम.)
द्रव्यमांथी तो पर्याय शुद्ध ज आवी ने पछी परलक्षे अशुद्ध थई–ए
समाधान बराबर नथी.
(२) द्रव्यमांथी अशुद्धता नथी आवती माटे निमित्ते ते अशुद्धता करावी–एम
कोई कहे तो ते समाधान पण बराबर नथी.
(३) द्रव्यनी पर्यायमां अशुद्धता थती ज नथी. अशुद्धता तो जडमां थाय छे–
एम कोई कहे तो ते पण बराबर नथी. तेनुं यथार्थ समाधान नीचे
प्रमाणे समजवुं जोईए–
समाधान
वस्तु अनेकांतस्वभावी छे; सत्–असत्, नित्य–अनित्य, एक–अनेक, द्रव्य–
पर्याय वगेरे अनेक धर्मो तेनामां छे; तेमांथी चालु विषयमां द्रव्य–पर्यायरूप स्वभाव
मुख्य लईने समाधान करवामां आवे छे.