करो चिन्तवन शुद्धातमका पालो सहज स्वभावको.
नर पशु देव नरक गतियोंमें बीता कितना काल है,
फिर भी नहीं समझ पाए यह भववन अति विकराल है.
तजो शुभाशुभ भाव यही शुद्धोपयोगकी ढाल है,
किया तत्त्व निर्णय जिसने वह जिनवाणीका लाल है.
द्रव्यद्रिष्टिसे समकित निधि पा, कर लो दूर अभावको,
करो चिन्तवन शुद्धातमका पालो सहज स्वभावको.
पाप–पुण्य दोनों जगस्रष्टा ईनमें दुःख भरपूर है,
ईनकी उलझन सुलझ न पाईतो फिर सुख अति दूर है.
ईस प्रकार परभावोंमें जो भी प्राणी चकचूर है,
पर विभावको नष्ट करे जो वह ही सच्चा शूर है.
समकित–औषधिसे अच्छा कर लो अनादिके घावको,
करो चिन्तवन शुद्धातमका पालो सहज स्वभावको.
बीती रात प्रभात हो गया जिनवाणीका तूर्य बजा,
जिसने दिव्यध्वनि हृदयंगम की उसके उरमें सूर्य सजा.
आत्मज्ञानका देख उजाला भाग रहे परभाव लजा,
चिदानंद चैतन्य आत्माका अंतरमें नाद गजा.
समकितकी सुगंध महकी है देखो ज्ञायकभावको,
करो चिन्तवन शुद्धातमका पालो सहज स्वभावको