Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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* केवळीभगवाननी क्षायिकी–क्रिया *
तेना निर्णयमां ज्ञान ने उदयनी भिन्नतानो निर्णय
अहो, सर्वज्ञ–तीर्थंकर देव! आपनी दिव्यता खरेखर
आश्चर्यकारी छे.....कर्मनो उदय पण आपने मोक्षनुं कारण थाय छे,
बंधनुं कारण नथी थतो. आपना केवळज्ञानना कोई अचिंत्य प्रभावने
लीधे उदयनी क्रियाओ पण आपने तो मोक्षनुं ज कार्य करी रही छे,
केमके उदयना काळे आपने कर्मनुं बंधन जरा पण नथी थतुं, पण ऊल्टो
कर्मनो क्षय ज थतो जाय छे, एटले ते उदयक्रियाओ पण आपने माटे
तो क्षायिकी–क्रिया ज छे.
–तो हे भगवान! आपना अचिंत्य केवळज्ञाननो स्वीकार
करनारुं अमारुं सम्यग्ज्ञान, ते पण मोहनो क्षय करतुं–करतुं मोक्ष तरफ
जाय–एमां शुं आश्चर्य छे? प्रभो! मोक्षना मार्गे चडेला अमारा जेवा
साधको ज आपनी क्रियाओने क्षायिकी क्रियारूपे स्वीकारी शके छे. हे
सर्वज्ञदेव! उदय वखते पण आपना क्षायिकभावने जेणे ओळखी लीधो
तेनुं ज्ञान उदयभावोथी छूटुं पडीने क्षायिकभाव तरफ चाल्युं.
(प्रवचनसार गा. ४५)
तंत्री: पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २५०१ पोष (लवाजम: छ रूपिया) वर्ष ३२: अंक ३
(३७५)