Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २५०१ आत्मधर्म : २९ :
चक्रवर्ती जाणता हता के तेमां अमारुं कोई ज नथी, अमाराथी ते बधाय भिन्न छे, तेमां
क्यांय अमे नथी; आवा भेदज्ञाननी कळावडे अंदरमां चैतन्यना आनंदनो स्वाद लेता
हता. आवुं ज्ञान ते आत्मानुं स्वरूप छे, एकवार प्रगट कर्या पछी ते भेदज्ञाननी धारा
आगळ वधीने अक्षय केवळज्ञानने साधे छे....ने पूर्णानंदने प्राप्त करे छे माटे कहे छे के
जगतमां जे कोई जीवने आत्मानुं सुख जोईतुं होय ते सर्वे जीवोए अंतरमां करोडो
उपायथी, एटले के अंतरना महान अपूर्व उद्यमथी परिणामने आत्मामां जोडीने
सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान करवुं. त्रणे काळे आवुं सम्यग्ज्ञान ते ज मोक्षनो उपाय छे; तेना
वडे ज विषयोनी ईच्छारूप भयंकर दावानळ बुझाय छे ने परम आत्मशांति पमाय छे.
* जड–चेतन संवाद *
सुनु तो थयुं रे पींजर सुनु तो थयुं,
पंछी तो उड्युं ने पींजर सुनु तो थयुं.
चेतन पूंछे रे काया मान तुं वात मारी
जीवनभर रह्या भेगा, जावुं केम एकला रे....... पंछी तो.
काया बोले वेण मीठा सांभळ ओ चेतन हंसा,
अमे जड ने तुं चेतन, अनादिना जुदे जुदा रे....... पंछी तो.
जीव समजावे काया, लालन, पालन में कीधुं,
रेशमना चीर हीरा मोतीथी मढी दीधुं रे.......... पंछी तो....
काया बोले चेतन भोळा तुं भींत भूल्यो रे,
पुद्गलनां खेल एमां तूं केम राच्यो रे.......... पंछी तो..
चेतन कहे वात छेल्ली सांभळ ओ काया घेली,
मारो संग छोडवाथी, भस्म थावुं जोशे रे........... पंछी तो.
वाह रे चेतन वात तारी मने तेनी तमा नहीं,
माटीना पूतळाने हरख शोक कंई नहीं रे........... पंछी तो.
गुरुजी कहे मीठी वाणी सांभळ ओ भवी प्राणी,
हीरा जेवी जींदगानी आतमराम भजी ले रे.......... पंछी तो.