Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
आवे छे, तेम चैतन्यना आनंदनी कोई अतीन्द्रिय मीठाश छे तेनो स्वाद भेदज्ञानीने
आवे छे. शुभविकल्पमां आकुळता छे, तेना स्वादथी जुदो परम नीराकुल शांतरस
आत्मामां छे; तेने माटे आखा संसारना बाह्यभावोनो रस छूटीने अंदर आत्मानो रस
आववो जोईए, अत्यंत प्रेमथी तेमां परिणाम लगाडवा जोईए. आत्मा अरूपी होवा
छतां सत् वस्तु छे, तेनो साक्षात्–स्वाद धर्मीने स्वानुभवमां आवे छे. अरूपी छे तेथी
कांई अनुभवमां न आवे एवो नथी, ज्ञान वडे अनुभवमां आवे तेवो छे. पण तेने
माटे अंतरमां तेनो खूब अभ्यास करवो जोईए. ‘करोडो उपायथी पण सम्यग्ज्ञान कर’
एम कह्युं, परंतु ‘करोडो उपायथी तुं शुभराग कर’ एम न कह्युं, केमके सुखनुं कारण
कांई राग नथी, सम्यग्ज्ञान ज सुखनुं कारण छे. माटे विकल्पथी जुदो पडीने आत्मानो
अभ्यास करवो. सम्यग्दर्शन पछी पण जे व्रतादिना विकल्पो आवे तेनाथी पण ज्ञाननी
भिन्नतानो अभ्यास करवो. भाई, तारा हित माटे तुं दुनियानी दरकार छोड ने सर्व
उपायथी आत्माना ज्ञाननो उद्यम कर. भले करोडो मुश्केली बहारमां आवे, निंदा थाय,
रोग हो, निर्धनता हो, छतां तुं अंतरमां आत्माना अनुभवनो उद्यम कर. मरीने पण
(मरण जेटली प्रतिकूळता आवी पडे तोपण) तुं आत्मामां ऊतरीने सम्यग्दर्शन कर. ते
अंतरनी अपूर्व वीतरागी क्रिया छे. धर्ममां आ मूळ चीज छे, तेना वगर शुभनी कांई
किंमत नथी. जगतने शरीरनी ने रागनी क्रिया देखाय छे, पण धर्मीना अंतरमां
चैतन्यना श्रद्धा–ज्ञाननी वीतरागी क्रिया छे ते तेने देखाती नथी; तेने ओळखे तो ते
न्याल थई जाय. अहीं करोडो उपायथी ज्ञान करवानुं कह्युं, तो कांई जुदा जुदा करोड
उपाय नथी, उपाय तो एक ज छे, पण करोडो प्रकारनी प्रतिकूळता वच्चे पण, आत्माने
ओळखीने तेनो अनुभव करवो, भेदज्ञान करवुं–ते ज एक कर्तव्य छे.
जेना अंतरमां साची ज्ञानकळा जागी ते जीवने संसार प्रत्ये सहज वैराग्य थई
जाय छे; विषय–कषायोमां तेने स्वप्नेय सुख के मीठाश लागती नथी. ते भले गृहस्था–
श्रममां होय, पुण्य–पापना भावो थता होय, छतां ज्ञानबळने लीधे आत्माने पुण्य–
पापथी भिन्न ज्ञानस्वादरूप अनुभवे छे; परनी साथे मारे कांई संबंध नथी–एम तेनी
ज्ञानपरिणति परथी ने रागथी अत्यंत निर्लेप रहे छे. भगवान आत्माना आनंदअमृत
पासे विषय–कषायोने झेर जेवा समजे छे. भरतचक्रवर्ती, राजा राम वगेरे सम्यग्द्रष्टि
हता, तेमने अंतरमां आवी दशा हती. ईंद्र जेनो मित्र, छन्नुंहजार जेने राणीओ, छ
खंडनुं जेने राज्य, तीर्थंकर जेना पिता अने नवनिधान जेना घरे,–छतां ते भरत–