: पोष : २५०१ आत्मधर्म : ४१ :
४२. (१) जेम हाथीनुं बच्चुं अथवा ऊंट कमळने देखतां पोतानां बंधन तोडीने
विचरे छे, तेम जेनुं मन अक्षयिनीरामा (मुक्तिरमणी) मां लागेलुं छे ते
बुधजन जगतमां रति केम करे छे? (–ते संसारनां बंधन तोडीने मोक्षमार्गमां
विचरे छे.)
(बीजो अर्थ: अक्षय एवी मोक्षसुंदरीमां जेनुं मन लाग्युं छे ते बुधजन जगतमां
रति केम करे? माटे हे जीव! तुं ऊंट उपर पलाण नांख अने तेनां बंधन छोडी
दे–के जेथी ते (मोक्ष तरफ) आगळ वधे.
४३. हे जीव! पांच ईन्द्रियना संबंधमां तुं ढीलो न था. (–उग्रपणे तेने वश कर.) तेमां
बेनुं तो निवारण कर–एक तो जीभने रोक अने बीजुं पराई नारीने छोड.
४४. रे जीव! तें न तो पांच बळद राख्या, के न कदी तुं नंदनवनमां गयो, मफतनो
परिव्राजक थई गयो!–तेम तें न तो आत्माने जाण्यो के न परने जाण्या,
मफतनो परिव्राजक बनी बेठो! (पांच ईन्द्रियरूपी बळदने जेणे वश नथी कर्या,
ने स्व–परनुं भेदज्ञान करीने चैतन्यना नंदनवनमां जेणे प्रवेश नथी कर्यो तेने
प्रवज्या होती नथी.)
४५. हे सखी! पियुने तो बहारमां पांचनो स्नेह लाग्यो छे; जे दुष्ट परनी साथे
मळेलो छे तेनुं स्वघरमां आगमन देखातुं नथी. (पांच ईन्द्रियना विषयोमां
फसायेलो जीव स्वपरिणतिना आत्मिकआनंदने अनुभवी शकतो नथी.)
४६. ज्यारे मन चिंतारहित–निश्चित थईने सूई जाय छे (एटले के एकाग्र थईने
थंभी जाय छे) त्यारे ज ते उपदेशने समजी शके छे; अने अचित्त वस्तुथी
चित्तने जे अलग करे छे ते ज निश्चिंत थाय छे.
४७. जे आगळ देखतो थको मार्गमां (ध्येय तरफ) चाल्यो जाय छे, तेना पगमां
कदाचित् कांटो लागी जाय तो लागो, तेमां तेनो दोष नथी. (पूर्वकृत कोई
अशुभ उदय आवी पडे तेमां वर्तमान आराधनानो दोष नथी.)
४८. एने छोडी दो....मोकळुं मेली दो....स्वतंत्रपणे एने ज्यां गमे त्यां भले जाय;
सिद्धि–महापुरी तरफ एने आगळ वधवा दो. कांई हर्ष–विवाद न करो.
(आत्माने ईन्द्रियविषयोना बंधनथी मुक्त करीने, मोक्षपुरी तरफ आनंदथी
जवा दो. पांच ईन्द्रियविषयोथी मुक्त थयेलुं मन सिद्धपुरी तरफ प्रयाण करे छे.)
: (चालु)