Atmadharma magazine - Ank 375
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : पोष : २५०१
मंगल तीर्थ गीरनार अने त्यानां संतो
(वीर सं. २४८७ मां यात्रावखते गीरनार उपर बेठाबेठा गुरुदेवे ‘सुवर्ण सन्देश’
माटे जे यादगार हस्ताक्षर करी आपेला ते अहीं साभार आप्या छे.)
श्री नेमप्रभुनी साधनाभूमि तेमज सिद्धभूमि गीरनार, षट्खंडागमनी
जन्मभूमि गीरनार, ‘धवल’ मां ‘क्षेत्र–मंगळ’ तरीके वीरसेनस्वामीए जेनुं स्मरण कर्युं
छे ते गीरनार, कुंदकुंदस्वामीए यात्रा वखते ज्यां जैनधर्मनो जयजयकार वर्ताव्यो ते
गीरनार, अने आ महा सुद चोथे गुरुदेव साथे आपणे चोथी वखत जेनी यात्रा करीशुं
ते मंगलतीर्थ गीरनार!–जाणे वैराग्यनो मोटो पुंज! जाणे मुनिवरोना अतीन्द्रिय
आनंदनो प्रतिनिधि! ‘वाह गीरनार वाह! ’
भगवान नेमिनाथप्रभुनी आ कल्याणभूमि! विवाह समये वैराग्य पामी जेओ
हस्रआम्रवनमां आव्या ने दीक्षा लईने रत्नत्रय पाम्या; चोथुं ने पांचमुं ज्ञान पण
प्रभुने आ दीक्षावनमां ज प्रगट्युं. ए दीक्षावन आजे पण कोई अनेरा उपशांतभावथी
छवाई गयुं छे.
सौराष्ट्रना उन्नत तीर्थधाममां अनेक संतोनी आत्मसाधनाना रणकार गुंजी रह्या छे.
(१) पहेली टूंके धरसेनस्वामीनी चंद्रगूफामां जिनवाणीना रणकार गूंजी रह्या छे, ने
राजुलनी गूफा जगतने वैराग्यनो सन्देश आपी रही छे.
(२) बीजी टूंके श्रीकृष्णना पौत्र अनिरुद्धकुमार तपस्या करीने मुक्ति पाम्या छे,
तेमनां चरणचिह्न छे.