Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 47

background image
: १४ : आत्मधर्म : महा : २५०१
अतीन्द्रिय आत्माथी विरुद्ध ईन्द्रियो, तेना वडे आत्मा क््यांथी जणाय?
बहिरात्मा पोताना आत्मज्ञानथी परांग्मुख वर्ततो थको, ईन्द्रियोद्वारा शरीरादि बाह्य
पदार्थोने ज जाणवामां तत्पर छे. आत्माने तो ते देखतो नथी, तेथी ते शरीरने ज
आत्मा तरीके मानी ले छे. तेने देहाध्यास थई गयो छे, तेथी देहथी पोतानुं जुदापणुं
तेने भासतुं ज नथी. ज्ञानने बहारमां ज जोडे छे,–पण अंदरमां वाळतो नथी. बहारमां
ईन्द्रियोना अवलंबने तो जड देखाय, कांई आत्मा न देखाय; तेथी ते बहिरात्माने
शरीरथी पृथक् आत्मानुं अस्तित्व भासतुं ज नथी, ते तो शरीरने ज आत्मा माने छे.
अरे! केवी भ्रमणा! के पोतानुं अस्तित्व ज पोते भूली गयो! ने जडमां ज पोतानुं
अस्तित्व मानी बेठो!–एने समाधि क््यांथी थाय?
जीवस्वरूपनुं ज्ञान तो अतीन्द्रिय–अंतर्मुख ज्ञानथी ज थाय छे. बहिर्मुख–
ईन्द्रियज्ञानथी थतुं नथी. अज्ञानी पोताना ज्ञानस्वभावने जाणतो नथी, पण ईन्द्रियोने
ज ज्ञाननुं साधन माने छे, एटले ईन्द्रियद्वारा जणाता आ देहादिने ज पोतानुं स्वरूप
माने छे. देहादिक तो जड छे, ते कांई आत्मा नथी, आत्माथी अत्यंत भिन्न छे. पण
अज्ञानीने ईन्द्रियज्ञानद्वारा देहथी जुदो आत्मा देखातो नथी, ते देहादि बाह्य पदार्थने ज
आत्मा माने छे,–माटे ते बहिरात्मा छे. ज्ञानने अंतर्मुख करीने जाणे तो ते अतीन्द्रिय
ज्ञानवडे देहादिथी भिन्न चिदानंदस्वरूप आत्मानुं स्वसंवेदन थाय, एटले बहिरात्मपणुं
टळीने अंतरात्मपणुं थाय.
ईन्द्रियोथी पार एवा अतीन्द्रिय–आत्मसन्मुखी ज्ञानवडे ज आत्मा
स्वसंवेदनमां आवे छे, ने त्यां अतीन्द्रिय शांतिरूप समाधि प्राप्त थाय छे. बीजी कोई
रीते आत्माने समाधि के शांति थाय नहीं.
भले अभण होय–लखतां वांचतांय आवडतुं न होय, पण ज्ञानने अंतर्मुख
करीने चैतन्यविषयने जो जाणे छे तो तेनुं ज्ञान साचुं छे. तेनुं ज्ञान मोक्षनुं कारण छे. जे
ज्ञान मोक्षनुं कारण थाय ते ज साची विद्या छे; ए सिवाय लौकिक विद्या गमे तेटली
भणे तो पण आत्मविद्यामां तो ते नपास ज छे, तेनुं भणतर कुविद्या ज छे. अरे!
पोताना चैतन्यतत्त्वने चूकीने देहादिमां ज आत्मबुद्धिथी ते अज्ञानी जीव क्षणे क्षणे
भयंकर भावमरणमां मरी रह्यो छे. एनाथी छूटवानी ने आत्मानो आनंद पामवानी
जेने पिपासा जागी होय, तेने देहादिथी विविक्त आत्मानुं स्वरूप बतावीने संतो कहे छे
के–अपूर्व शांति पामवा माटे आत्माने ओळखो.