Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २५०१ आत्मधर्म : १३ :
हे भाई! मिथ्यात्वनुं आकरुं फळ छे, एम जाणीने तुं ते मिथ्यात्वनुं सेवन छोडी
दे, ने आत्मानुं स्वरूप समज–जेथी तारुं हित थाय. आम हित माटे ज ज्ञानीनो
उपदेश छे.
जे जीवो सत्य समजे तेनी बलिहारी छे...तेना संसारनो एक–बे भवमां अंत
आवी जशे.
आत्मानो परिपूर्ण आनंद जेमने प्रगटी गयो छे ते परमात्मा छे. ते परमात्मा
परिपूर्ण ज्ञानसहित छे; अनादि अनंत काळने जेम छे तेम पोताना दिव्यज्ञानमां प्रत्यक्ष
जाणे छे. जेनो क्यांय छेडो नथी एवा अनंत अलोकाकाशने पण प्रत्यक्षपणे परिपूर्ण
जाणे छे, एवुं ज दिव्यज्ञाननुं कोई अचिंत्य सामर्थ्य छे. ज्ञाने अनादिअनंत आकाशने
प्रत्यक्ष जाणी लीधुं माटे ज्ञानमां तेनो छेडो आवी गयो–एम कांई नथी; जो छेडो आवी
जाय तो अनादि–अनंतपणुं क््यां रह्युं? माटे ज्ञाने तो अनादिअनंतने
अनादिअनंतरूपे ज जेम छे तेम जाण्युं छे.–आ ज्ञाननो कोई अचिंत्य महिमा छे.
अज्ञानीने अनादिअनंत काळनी महानता भासे छे, पण ज्ञानसामर्थ्यमां तेना करतां
अनंतगणी महानता छे–ते तेने भासती नथी; अने ज्ञानस्वभावनो महिमा प्रतीतमां
आव्या वगर आ वातनुं कोई रीते समाधान थाय तेम नथी. काळनुं अनादिअनंतपणुं
तेने मोटुं लागे छे पण ज्ञाननुं अनंत सामर्थ्य तेने मोटुं नथी लागतुं, एटले ज
‘अनादिअनंतने ज्ञान कई रीते जाणे? ’ एम तेने शंका पडे छे; तेमां खरेखर तो
ज्ञानसामर्थ्यनी ज शंका छे. काळना अनादिअनंतपणा करतां ज्ञानसामर्थ्य मोटुं छे–एम
जो विश्वास आवे तो ज, तेने अनादिअनंतनुं ज्ञान कई रीते थाय छे ते ख्यालमां आवे.
अहा! अचिंत्य ज्ञानसामर्थ्यमां अनादिअनंतकाळ तो क््यांय समाई जाय छे, ने काळ
करतांय अनंतगणुं आकाश पण तेमां परिपूर्ण जणाई जाय छे. आवुं महान ज्ञान अने
अतीन्द्रिय आनंद जेमने परिपूर्ण प्रगटी गया छे एवा परमात्माने ओळखतां अपूर्व
भेदज्ञान अने शुद्धात्मअनुभूति थाय छे.
सर्वज्ञनी स्तुति करतां साधक कहे छे के हे अरिहंत परमात्मा! आप पोते
मोक्षमार्गनी विधि (अर्थात् सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र) ने धारण करीने मुक्ति पाम्या
ने बीजा जीवोने पण ते मुक्तिमार्गनुं विधान कर्युं तेथी आप ज अमारा विधाता छो;
अमने मोक्षमार्गमां दोरी जनारा नेता पण आप छो. (–मोक्ष मार्गस्य नेतारं...)