जे रागादिथी लाभ माने तेणे हितोपदेशी सर्वज्ञ–वीतराग परमात्माने मान्या नथी,
तेमना उपदेशने जाण्यो नथी.
सन्मुख थईने तेनो अनुभव करवो ते ज जैनशासन छे अने जे पोताना आवा
आत्मानो अनुभव करे तेने ज परमात्मानी परमार्थ ओळखाण थाय के अहो! रागथी
जुदो पडीने जे अतीन्द्रिय आनंदनो अंश मने वेदनमां आव्यो ते ज जातनो (पण तेथी
अनंतगुणो) परिपूर्ण आनंद परमात्माने प्रगटी गयो छे, ने तेओ सर्वथा रागरहित
थई गया छे. आ रीते अंशना वेदनपूर्वक पूरानुं भान थतां साधकने तेना प्रत्ये खरी
भक्ति अने बहुमान आवे छे. परमात्मा प्रत्ये जेवा भक्त–बहुमान ज्ञानीना अंतरमां
होय तेवा अज्ञानीने न होय.
भगवंतो स्वरूपनी सीमाने धारण करनारा छे ने महान वीर्यना धारक छे.–आ रीते
गुणना स्वरूपथी परमात्माने ओळखवानी प्रधानता छे. अने, परमात्माने जेटलां
गुणवाचक नामो लागु पडे छे ते बधांय नामो आ आत्माने पण स्वभावअपेक्षाए
लागु पडे छे, केमके स्वभावथी तो आ आत्मा पण परमात्मा जेवो ज छे. परमात्माना
गुणोने ओळखीने परमात्मानुं स्वरूप जे जाणे तेने आत्मानुं परमार्थ स्वरूप पण जरूर
ओळखाय छे, ने तेने भवदुःखनो अंत आवे छे.
दुःखनो त्रास भोगव्यो ने हवे ते दुःखथी छूट्या,–ते दुःख बीजा पामे एवी भावना
ज्ञानीने केम होय? ज्ञानीने तो एवी सहज करुणा आवे छे के अरेरे! आ जीवो
बिचारा पोताना स्वरूपने भूली जईने अज्ञानने लीधे महान दुःखमां डूबेला छे,
एनाथी छूटवाना उपायनी पण तेमने खबर नथी! हुं जे परिपूर्ण सुखने प्राप्त करवा
चाहुं छुं ते सुख बीजा जीवो पण पामे–एम ज्ञानीने तो अनुमोदना छे...करुणा छे.