Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 47

background image
: महा : २५०१ आत्मधर्म : ११ :
*
जीव तो ज्ञान–दर्शन–आनंदस्वरूप छे.
* देह वगेरे तो अजीव छे, ते जीवथी भिन्न छे.
* राग–द्वेष–अज्ञान ते दुःखरूप भावो छे, एटले के ते आस्रव अने बंधरूप छे.
* सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप भाव ते जीवने सुखरूप छे, ते संवर–निर्जरा–
मोक्षनुं कारण छे.
–आम बधा तत्त्वोने जेम छे तेम जाणीने, एक ज्ञानानंदस्वरूप पोताना
आत्मामां ज आत्मबुद्धि करे छे, देहादिने पोताथी बाह्य जाणे छे, राग–द्वेष–अज्ञानने
दुःखरूप जाणीने छोडे छे, ने सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रने सुखरूप जाणीने आदरे छे;–
आवा जीवने अंतरात्मा कहे छे. आवुं अंतरात्मपणुं चोथा गुणस्थानथी शरू करीने
बारमा गुणस्थान सुधी होय छे.
चैतन्यस्वभावने देहादिथी भिन्न जाणीने तेना अवलंबने सर्वज्ञता ने आत्मानो
स्वाधीन अतीन्द्रिय आनंद भगवाने प्रगट कर्यो. ते भगवान परमात्मा सर्वज्ञ–
वीतराग अने परम हितोपदेशक छे. पोते सर्वज्ञ–वीतराग थया, ने बीजा जीवोने पण
अंतरंगस्वरूपना अवलंबने सर्वज्ञ–वीतराग थवानो ज उपदेश आप्यो.
भगवाननो उपदेश वीतरागतानो छे, राग राखवानो भगवाननो उपदेश नथी.
जो रागथी लाभ थाय तो भगवान पोते राग छोडीने वीतराग केम थया? अने जे
वीतराग थया छे ते रागथी लाभ थवानुं केम कहे? रागथी लाभ थाय एवो
भगवाननो उपदेश छे ज नहीं. रागथी लाभ थाय–एवो उपदेश ते हितोपदेश नथी पण
अहितोपदेश छे, केमके राग तो अहित छे, हित तो वीतरागता ज छे.
आ अपूर्व हितोपदेश छे;–जीवे पूर्वे कदी आवा आत्मानी श्रद्धा के ओळखाण
करी नथी. ज्ञानस्वभावनुं लक्ष करवुं ते ज परमहितनो मार्ग छे, ने एवा हितनो ज
उपदेश भगवाने कर्यो छे एटले के ज्ञानस्वभाव तरफ वळवानो ज भगवाननो उपदेश
छे. पराश्रयनो भगवाननो उपदेश नथी, ते तो छोडवानो भगवाननो उपदेश छे.