: १० : आत्मधर्म : महा : २५०१
विश्वास करे छे तेने बहिरात्मपणुं छूटीने ते अंतरात्मा थाय छे, ने ते पोतानी चैतन्य
शक्तिमां लीन थईने तेमांथी परमात्मदशा प्रगट करे छे.
आ रीते पहेलांं जेओ बहिरात्मा हता तेओ ज पोतानी शक्तिना अवलंबने
अंतरात्मा थया. आवी परमात्मा थवानी ताकात दरेक आत्मामां छे.
मारा आत्मामां परमात्मा थवानी ताकात छे ने तेमांथी परमात्मदशा प्रगट
करवी ते उपादेय छे. आवी शक्तिनी प्रतीत करतां बहिरात्मपणुं छूटीने अंतरात्मपणुं
थाय छे ने ते परमात्मा थवानो उपाय छे. आ रीते बहिरात्मपणुं छोडवा जेवुं छे,
परमात्मपणुं प्रगट करवा जेवुं छे ने अंतरात्मपणुं तेनो उपाय छे.
जुओ, परमात्मा थवानो एटले के मोक्षसुखनी प्राप्तिनो उपाय पोतामां ज
बताव्यो; शुद्धस्वभावना अनुभवरूप जे अंतरात्मदशा छे ते ज मोक्षसुखनो उपाय छे.
ए सिवाय बहारना कोई भावो ते मोक्षसुखनो उपाय नथी.
हुं शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूप छुं, ज्ञानदर्शनस्वरूप एक शाश्वत आत्मा ज मारो छे, ए
सिवाय संयोगलक्षणरूप कोई भावो मारा नथी, तेओ माराथी बाह्य छे–एम भेदज्ञान
करीने, आत्माना अंर्तस्वभावमां आत्मबुद्धि करवी ते अंतरात्मपणुं छे. आवा
अंतरात्मपणारूप साधन वडे परमात्मदशा प्रगट करवानो उपाय करवो जोईए.
* शरीरादि बाह्य पदार्थोमां ‘आत्मा’ नी भ्रांति जे करे छे ते बहिरात्मा छे.
* राग–द्वेषादि दोषो तथा चैतन्यस्वरूप आत्मा–तेमना संबंधमां जे भ्रांतिथी रहित
छे, अंतरमां आत्माने ज आत्मारूपे जाणे छे–ते अंतरात्मा छे. ते रागादि दोषने
दोषरूपे जाणे छे, ने पोताना चैतन्यस्वभावने स्वभावरूपे जाणे छे; तेने
रागादिमां ‘आत्मा’ नी भ्रांति थती नथी, ने मलिनताथी भिन्न पोताना
शुद्धस्वभावने ते निःशंकपणे जाणे छे.
* जे अत्यंत निर्मळ छे, जेमना रागादि दोषो सर्वथा टळी गया छे ने सर्वज्ञ
परमपद जेमने प्रगटी गयुं छे, ते परमात्मा छे. ए प्रमाणे त्रण प्रकारना
आत्मानुं स्वरूप जाणनार जीव बहिरात्मभाव छोडीने अंतरात्मभाव प्रगट करे छे,
ने परमात्मपदने साधे छे. माटे हे जीवो! अपूर्व शांति पामवा आत्माने ओळखो.
गृहस्थपणामां रहेलो जीव पण ज्ञानानंदस्वरूपे आत्मानुं भान करीने अंतरात्मा
थई शके छे; हजी राग–द्वेष होवा छतां, आत्मा ज्ञानानंदस्वरूप छे एवुं सम्यक्भान