Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २५०१ आत्मधर्म : ९ :
–आवा त्रण प्रकारमांथी सर्वज्ञता ने परिपूर्ण आनंदरूप एवुं परमात्मापणुं
परम उपादेय छे; अंतरात्मापणुं ते तेनो उपाय छे, अने बहिरात्मपणुं छोडवा जेवुं छे.
परमात्मा थवानुं साधन शुं? के अंतरात्मापणुं ते परमात्मा थवानुं साधन छे. अंतरमां
परमात्मशक्ति भरी छे, तेनी प्रतीत करीने तेमांथी ज परमात्मदशा प्रगटे छे. ए
सिवाय बहारमां बीजुं कोई तेनुं साधन छे ज नहि. आत्माना अंर्तअवलोकनमां कोई
बहारनी चीज सहायक पण नथी ने विघ्नकारी पण नथी. आवा अंर्त स्वभावनी द्रष्टि
करे तो अंतरात्मपणुं थाय ने बाह्यमां आत्मबुद्धिरूप बहिरात्मपणुं छूटी जाय. अने जे
अंतरात्मा थयो ते हवे अंर्तशक्तिमां एकाग्र थईने परमात्मा थई जशे. आ रीते
हेयरूप एवा बहिरात्मपणाने छोडवानो तथा उपादेयरूप एवुं परमात्मपणुं प्रगट
करवानो उपाय अंतरात्मपणुं छे. अने ते अंतरात्मपणुं कर्मादिथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप
आत्माने जाणवाथी ज थाय छे, माटे अहीं भिन्न आत्मानुं स्वरूप कहेवामां आवे छे.
बहिरात्मपणुं छोडी.....अंतरात्मा थई....परमात्माने ध्यावो.
आ बहिरात्मा, अंतरात्मा ने परमात्मा ए त्रण दशामांथी एक वखत एक दशा
व्यक्त होय छे. बहिरात्मदशा वखते अंतरात्मपणुं के परमात्पणुं व्यक्त न होय;
अंतरात्मदशा वखते परमात्मपणुं के बहिरात्मपणुं न होय; अने परमात्मदशा वखते
बहिरात्मापणुं के अंतरात्मपणुं न होय. अरिहंत अने सिद्धभगवान ते परमात्मा छे;
चोथा गुणस्थानथी मांडीने बारमा गुणस्थान सुधीना साधक जीवो ते बधाय अंतरात्मा
छे; अने मिथ्याद्रष्टिजीवो बहिरात्मा छे.
बहिरात्मदशा वखते पण आत्मानी शक्तिमां परमात्मा थवानी ताकात पडी छे.
भगवाने समवसरणमां एवी दिव्य घोषणा करी छे के अहो जीवो! तमारा आत्मामां
परमात्मशक्ति भरेली छे, ते शक्तिनो विश्वास करो. जे जीव पोतानी परमात्मशक्तिनो