दीधो हतो. त्यारबाद गुरुदेव साथेनी आ तीर्थयात्रामां हर्षोपलक्षमां सेंकडो यात्रिकोए
तीर्थयात्राफंडमां दाननी रकमोनी एवी रमझट बोलावी के ते लखवामां पहोंची न शकायुं....
अंते फाळो लखवानुं बंध करीने भक्ति शरू करवी पडी...अजमेरनी भजनमंडळीए भक्ति
करावी हती. त्यारबाद नेमप्रभुना चरणनी पूजा थई हती.
सहेसावनना उपला भागमां एक बीजी घूमटी छे,–जेमां केवळज्ञान–कल्याणक तरीकेना श्री
नेमनाथ चरणोनी स्थापना छे. त्यां पण दर्शन कर्यार्. आ रीते चारित्रधाम अने
केवळज्ञानधामनी यात्रा गुरुदेव साथे करीने आनंद–मंगळनां गीत गातां गातां सौ पहेली
टूंके आव्या.
राजुलना वैराग्यप्रसंगनो संवाद (राजुल–बाबुल संवाद) श्रोताओने वैराग्यभावनामां
झूलावतो हतो. विवाह करवा आवेला नेमनाथ ज्यारे पाछा फरी जाय छे...ने मुनिदीक्षा
धारण करे छे, त्यारे सती राजीमती विलाप के आर्तध्यान नथी करती परंतु पोते पण वैराग्य
पामीने पिताजीने कहे छे के: मारा नाथ जे मार्गे गया...हुं पण ते ज मार्गे जईश. भगवाने
सहेसावनमां जईने चारित्रनो मार्ग लीधो तो हुं पण ते ज मार्गे जईने अर्जिका बनीश....ने
स्त्रीपर्याय छेदीने एक भवमां मोक्षने साधीश....धन्य छे के मने संयमनो अवसर मळ्यो....
महान आदर्शरूप छे–ए बंनेना जीवन! त्रण कल्याणकधामनी यात्रा प्रसंगे खरेखर अहीं
ज्ञान–वैराग्यभक्तिनी त्रिपुटीनो जीवंत त्रिवेणीसंगम थयो हतो....जे आत्मार्थीओना
जीवनने पावन करतो हतो.