दुन्यवी वातावरणथी पर छे.....अने जाणे के संसारथी जुदी ज जातनुं एवुं मोक्षपदनुं
धाम छे–एम ते दर्शावी रह्युं छे.
साधवा नीकळेला आत्मार्थीओने संसारना गमे तेवा वावाझोडां पण रोकी शकता
नथी...सौने एक ज धून हती के गुरुदेव साथे सिद्धिधाममां जवुं. घणा तो वेलावेला
पांचमी टूंके जईने गुरुदेवनी राह जोता बेठा हता...
उदरमां समावी दीधो छे.–एनी गंभीरतानी शी वात! ज्यां तीर्थंकरना त्रण कल्याणक
ऊजवाया, ज्यांथी नेम–राजुले जगत समक्ष महान पवित्र आदर्शो रजु कर्या, ज्यां
धरसेनस्वामी जेवा अनेक सन्तोए श्रुतनी साधना करी, कुंदकुंदाचार्य जेवा समर्थ
आचार्योए संघ सहित जेनी यात्रा करीने दि. जैनधर्मना जयनाद फेलाव्या...एवा आ
गीरनारना गौरवनी शी वात! एना ऊंचा ऊंचा शिखरो, ऊंडी ऊंडी गूफाओ, अने
हजारो आम्रवृक्षोथी शोभता उपशांत वनो भविकहृदयने मुग्ध बनावे छे...तेमांय
गुरुदेव जेवा संतो साथे आत्मानी भावना भावतां भावतां आ गीरनारनो खोळो
खूंदता होईए..ते प्रसंगनी उर्मिओनी शी वात! दूरदूरथी ज्यारे ए मोक्षधाम देखायुं
त्यारे ख्याल आव्यो के आपणे केटले ऊंचे जवानुं छे! परंतु गुरु जेना मार्गदर्शक होय...
गुरु जेने पोतानी साथे ज लई जता होय ते शिष्यने ईष्टधाममां पहोंचतां शी वार! ने
गुरुदेव साथेना उत्साहमां थाक पण शेनो लागे! थोडी ज वारमां गुरुदेव साथे पांचमी
टूंके पहोंची गया. भगवानना मोक्षकल्याणकनुं आ धाम! अहींथी बराबर उपर
(समश्रेणीए) सिद्धालयमां भगवान बिराजे छे. अहीं गुरुदेव साथे मोक्षधाम
नीहाळवा माटे भक्तोनी भीड अपार हती....