Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 47

background image
: महा : २५०१ आत्मधर्म : १७ :
गीरनार यात्रा –
[चालु]
वीर सं. २४८७ ना महा सुद १२ नी सवारमां पांचमी टूंक तरफ यात्रिकोए
प्रस्थान कर्युं; नेमनाथप्रभु ज्यांथी पंचमगति पाम्या एवी आ पांचमी टूंकनुं वातावरण
दुन्यवी वातावरणथी पर छे.....अने जाणे के संसारथी जुदी ज जातनुं एवुं मोक्षपदनुं
धाम छे–एम ते दर्शावी रह्युं छे.
सवारमां पवनना सखत वावाझोडांनी वच्चे पण गुरुदेव साथे यात्रिकोनी
वणझार पांचमी टूंक तरफ चाली...खरेखर, जिनमार्गमां संतोनी साथे मोक्षधामने
साधवा नीकळेला आत्मार्थीओने संसारना गमे तेवा वावाझोडां पण रोकी शकता
नथी...सौने एक ज धून हती के गुरुदेव साथे सिद्धिधाममां जवुं. घणा तो वेलावेला
पांचमी टूंके जईने गुरुदेवनी राह जोता बेठा हता...
आखाय गीरनारनुं द्रश्य खूब ज गौरवशाळी छे...ए जेवो उन्नत छे एवो ज
भव्य छे. बोंतेर करोड अने सातसो मुनिओनी मोक्षसाधनानो ईतिहास जेणे पोताना
उदरमां समावी दीधो छे.–एनी गंभीरतानी शी वात! ज्यां तीर्थंकरना त्रण कल्याणक
ऊजवाया, ज्यांथी नेम–राजुले जगत समक्ष महान पवित्र आदर्शो रजु कर्या, ज्यां
धरसेनस्वामी जेवा अनेक सन्तोए श्रुतनी साधना करी, कुंदकुंदाचार्य जेवा समर्थ
आचार्योए संघ सहित जेनी यात्रा करीने दि. जैनधर्मना जयनाद फेलाव्या...एवा आ
गीरनारना गौरवनी शी वात! एना ऊंचा ऊंचा शिखरो, ऊंडी ऊंडी गूफाओ, अने
हजारो आम्रवृक्षोथी शोभता उपशांत वनो भविकहृदयने मुग्ध बनावे छे...तेमांय
गुरुदेव जेवा संतो साथे आत्मानी भावना भावतां भावतां आ गीरनारनो खोळो
खूंदता होईए..ते प्रसंगनी उर्मिओनी शी वात! दूरदूरथी ज्यारे ए मोक्षधाम देखायुं
त्यारे ख्याल आव्यो के आपणे केटले ऊंचे जवानुं छे! परंतु गुरु जेना मार्गदर्शक होय...
गुरु जेने पोतानी साथे ज लई जता होय ते शिष्यने ईष्टधाममां पहोंचतां शी वार! ने
गुरुदेव साथेना उत्साहमां थाक पण शेनो लागे! थोडी ज वारमां गुरुदेव साथे पांचमी
टूंके पहोंची गया. भगवानना मोक्षकल्याणकनुं आ धाम! अहींथी बराबर उपर
(समश्रेणीए) सिद्धालयमां भगवान बिराजे छे. अहीं गुरुदेव साथे मोक्षधाम
नीहाळवा माटे भक्तोनी भीड अपार हती....
पांचमी टूंके देरीमां नेमनाथ प्रभुना चरणोनी स्थापना छे; तथा बाजुमां