Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : महा : २५०१
पर्वतना एक भागमां तेमनी प्रतिमा कोतरेली छे. जे हाल जर्जरित दशामां होवा छतां
नेमनाथ प्रभुना मोक्षगमननो पावन सन्देश संभळावी रही छे.
गुरुदेव भगवानना चरण समीपे बेठा...प्रभुचरणोमां दर्शन कर्या...उपर
सिद्धालय तरफ नजर करीने नमस्कार कर्या.....अने पछी, आ भूमिमां भगवान
नेमनाथे जे पदने साध्युं ते पदनी भावना भावतांं गुरुदेवे नीचेनी त्रण कडी गवडावी–
अपूर्व अवसर एवो क््यारे आवशे...
क््यारे थईशुं बाह्यांतर निर्ग्रंथ जो...
सर्व संबंधनुं बंधन तीक्ष्ण छेदीने...
विचरशुं कव नेमिप्रभुने पंथ जो...
भावना भावतां भावतां वच्चे आ तीर्थनो परिचय आपतां गुरुदेवे कह्युं:
“जुओ, दीक्षा लईने चारित्रदशामां झूलता झूलता भगवान केवळज्ञान पाम्या...पछी
अहीं अजोगीपद धारण कर्युं...ने ऊर्ध्वगमननी स्वभाव श्रेणीथी भगवान अहींथी मोक्ष
पाम्या....अहींथी तेओ सिद्धपद पाम्या. त्यारे ईन्द्रो अहीं ऊतर्या हता, ने भगवानना
मोक्षनो महोत्सव कर्यो हतो. ईन्द्रे पोताना हाथे अहीं निशानी करी हती, एवुं आ धाम
छे. तेना स्मरणो अहीं फरीने ताजा थाय छे.” गुरुदेवना आवा उद्गारोथी यात्रिकोने
अत्यंत हर्ष थयो हतो.
पंचमटूंके बेठाबेठा गुरुदेव सिद्धपदनी भावना भावी रह्या छे ने यात्रिको झीली
रह्या छे–
जे पद श्री सर्वज्ञे दीठुं ज्ञानमां,
कही शक्या नहीं ते पण श्री भगवान जो...
तेह स्वरूपने अन्य वाणी तो शुं कहे?
अनुभवगोचर मात्र रह्युं ते ज्ञान जो.
एह परमपद प्राप्तिनुं कर्युं ध्यान में...गजावगर ने हाल मनोरथरूप जो...
तो पण निश्चय राजचंद्र मनने रह्यो...प्रभुआज्ञाए थाशुं ते ज स्वरूप जो..
नेमनाथ भगवान अहीं हता, आत्मामां रहेली परमात्मशक्ति पूर्ण प्रगट
करीने, अहींथी तेओ सिद्धालयमां गया..तेना स्मरण माटे आ जात्रा छे.–आम कहीने
गुरुदेवे भावपूर्वक फरीने गायुं–