पाम्या छे ने ज्यां तेमना चरणचिह्न तथा मूर्ति पर्वतनी शिलामां कोतरेला छे) तेना
दूरथी दर्शन कर्या; त्रीजी टूंके पण कृष्णपुत्र शंबुस्वामी वगेरे मुनिवरो मोक्ष पाम्या छे
तेमना चरणोना दर्शन कर्या. आ उपरांत अंबाजीना मंदिरनुं अवलोकन कर्युं; केमके
प्राचीन ईतिहास अनुसार कुंदकुंदस्वामी ज्यारे गीरनारजीनी यात्राए पधार्या अने
श्वेताम्बरो साथे मोटी चर्चा थई त्यारे, आ मंदिरनां स्थाने अंबादेवीए दिगंबर
जैनधर्मनी सत्यतानी साक्षी पूरेली...तेथी ते ऐतिहासिक–स्थळनुं अवलोकन करतां
कुंदकुंदस्वामीना महान प्रभावनां सुस्मरणो ताजा थता हता.
उमंगभरी भक्ति द्वारा गुरुदेव साथेनी यात्रानो उल्लास व्यक्त कर्यो.
दिगंबर जिनमंदिरनी पाछळ थोडे दूर आवेली छे; आ गूफानुं स्थान घणुं शांत–सुंदर
रळियामणुं छे, तेमां बे खंड छे. एक खंडमां घणा प्राचीन चरणपादुका (जे घणुं करीने
धरसेनमुनिना होवा जोईए ते) जर्जरित दशामां पड्या छे. गूफामां बेठा–बेठा एक
नानीशी बारीमांथी गीरनारनो भव्य देदार नजरे पडे छे...ने पुद्गलना आ
डुंगराओथी जुदो हुं तो मारी चैतन्यगूफामां बिराजुं छुं–एम जगतथी जुदा चैतन्यनी
भावनाओ जगाडे छे. पू. गुरुदेव वगेरे सं. १९९६ मां आ गूफा जोवा पधार्या हता;
आ वखते पण तेओने आ गूफा जोवा जवानुं मन हतुं, परंतु गूफा सुधी जवानो मार्ग
घणो ज विकट होवाथी जवानुं बनी शक््युं न हतुं, पण ब्र. हरिभाई, ब्र. चंदुभाई
वगेरे केटलाक भाईओ त्यां गया हता. मुंबईना फोटोग्राफर श्री पुनमभाई शेठे आ
चंद्रगूफानी तथा तेमां बिराजमान चरणपादुकानी फिल्म पण लीधेली छे.
लखेला ए पावन हस्ताक्षर आत्मधर्म गतांकमां आपवामां आव्या छे.