Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : महा : २५०१
गीरनार उपर गुरुदेवनो सन्देश सांभळवानी घणा यात्रिकोने हार्दिक भावना
हती, तेम ज त्यांना केटलाक भाईओए ते माटे विनंति करी हती. आथी गीरनार उपर
गुरुदेवे वीस मिनिट प्रवचन आप्युं हतुं, तेमां तीर्थधाम एटले शुं ने तीर्थयात्रा शा
माटे? ते संबंधी विवेचन करीने नेमनाथप्रभुनुं अध्यात्मिक जीवन पण समजाव्युं हतुं.
गीरनारधाममां गुरुदेवनो आ सन्देश सांभळीने सौने महान प्रसन्नता थई हती..ए
रीते सिद्धिधाममांथी सिद्धिनो उपाय लईने सौए यात्रा पूरी करीने तळेटी तरफ प्रस्थान
कर्युं...गुरुदेव पण जिनमंदिरमां नेमनाथ प्रभुना दर्शन करीने तळेटी तरफ पधार्या...
पर्वत ऊतरतां ऊतरतां पू. बेनश्री तेम ज पू. बेन खूब ज आनंदकारी भक्ति करावता
हता....तेमांय प्रश्नोत्तररूपनी भक्ति तो नेमनाथप्रभु प्रत्ये, सिद्धपद प्रत्ये अने साधक
संतो प्रत्ये कोई अद्भुत भावो जगाडती हती; कोनी जात्रा करी, कोनी साथे जात्रा करी,
केवा भावे जात्रा करी, भगवाने शुं ग्रह्युं ने शुं छोड्युं?–ईत्यादिनुं वर्णन पू. बेनश्री–
बेनना श्रीमुखे सांभळतां–सांभळतां पहाड क्यारे ऊतराई गयो तेनी खबरेय न
पडी....नीचे धर्मशाळा पासे आव्या त्यारे गुरुदेव साथेनी यात्रानी पूर्णतानो आनंद
व्यक्त करती अद्भुतभक्ति करावी.....ने छेवटे जिनमंदिरमां श्री नेमिनाथ भगवानना
दर्शन करीने जयजयकारपूर्वक यात्रा पूर्ण करी.
परम वैरागी नेमिनाथ जिनेशने नमस्कार हो...
गीरनार तीर्थधामनी यात्रा करावनार गुरुदेवने नमस्कार हो....
गीरनारभूमिने पावन करनार संतोने नमस्कार हो....
विश्व–वात्सल्य
ज्ञानभावे बधा जीवो साधर्मी छे
ज्ञानस्वरूपनी अपेक्षाए जोतां जगतना बधा जीवो सहधर्मी छे.
समानधर्मी छे, एटले बधाय जीवोने साधर्मी समजीने, बधायने ज्ञान–
स्वरूपी समजीने, कोईना प्रत्ये द्वेष करवो न जोईए, बधा जीवोने ज्ञान–
स्वरूपी समजवा ए वीतरागी विश्ववात्सल्य छे.