* श्री नेमि तीर्थेश्वरनी स्तुति *
जिनवरदेव प्रत्ये भक्तिनी उत्सुकता
श्री नेमिनाथ तीर्थंकरनी स्तुति करतां नियमसारमां श्री
पद्मप्रभमुनिराज कहे छे के अहो प्रभो नेमि तीर्थेश्वर! सर्वज्ञताथी
शोभतुं आपनुं ज्ञानशरीर लोकालोकनुं निकेतन छे; तेमां लोकालोक
समाई जाय छे एवुं ते महान छे. शंखना ध्वनिथी आखी पृथ्वीने
ध्रुजावनारा हे जिनेन्द्र! आपनी दिव्यध्वनिना नादथी अमारो मोह
पण बिचारो ध्रुजी ऊठीने भागवा मांड्यो छे. अहो प्रभो! आपनुं
स्तवन करवा त्रणलोकमां कोण मनुष्यो के देवो समर्थ छे? हे जिन!
आपना प्रत्ये अति उत्सुक भक्तिने लीधे हुं आपने स्तवुं छुं.
अहो आनंदभूमि नेमिनाथ! आपना कल्याणक–धाम
गीरनारने जोतां आपश्रीनी सर्वोत्कृष्ट वीतरागी सर्वज्ञदशा प्रत्ये
अमारुं द्रव्य नमी पडे छे.