Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २५०१ आत्मधर्म : १ :
असार असार रे संसार.... चेतन–पद एक ज छे सार,
सुनो सुनो आ संसार! सुंदर...जेमां शांति अपार!
मने लागे संसार असार... मने लागे छे जिनपद सार,
झेरी संसारमां नहीं जाउं.... अमृत–पदमां हुं लीन थाउं...
नहीं जाउं नहीं जाउं रे... लीन थाउं...लीन थाउं रे...
चैतन्यसाधनामय जेमनुं जीवन छे, चैतन्यनो वीतरागी
आनंदस्वाद जेमणे चाख्यो छे–एवा भगवान राजकुमार नेमिनाथ
लग्नप्रसंगे ज्यारे जुनागढ पधारी रह्या छे त्यां वच्चे बनावटी हिंसानुं
द्रश्य–बंधनग्रस्त दुःखी पशुओनो करुण चित्कार अने राज्य माटे संसारनी
मायाजाळ देखीने एकदम भव–तन भोगथी विरक्त थया...ने वैराग्यनुं
चिन्तन करवा लाग्या के अरे, आवो असार संसार! ने मारा लग्न
निमित्ते आ हिंसा!–आवो संसार मारे न जोईए. जगतना भोग खातर
मारो अवतार नथी, आत्माना मोक्ष खातर मारो अवतार छे!
बस, ए तो चाल्या गया गीरनार सहस्रआम्रवनमां! ने चैतन्यनी
एवी शांतिमां लीन थया.....के शांतिथी प्रभावित थयेलुं सहस्रआम्रवन
आजे पण तेनी साक्षी पूरी रह्युं छे...
वाह रे वाह! नेमप्रभुनुं वैराग्यजीवन! ने एमनी अद्भुत
आत्मसाधना! एनी मधुरी वातो सांभळवी होय ने ए शांतिनो नमुनो
जोवो होय...तो आवो आ सहस्रआम्रवनमां!