Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : फागण : २५०१
अध्यात्म भावनानुं घोलन
[नवीन स्वाध्याय]
[२]
अध्यात्मभावनानुं घोलन थाय ने स्वाध्यायमां विशेष रस
जागे, ते माटे आ वर्षथी कोई ने कोई नवीन शास्त्रनो अनुवाद
रजु करवानुं आपणे शरू करेल छे. ते अनुसार ‘पाहुड दोहा’ नो
अनुवाद आपवानुं चालु करेल छे. तेमां आ बीजो लेख छे.
जिज्ञासुओने आ लेखमाळा गमी छे.
(सं.)
४९. मन तो परमेश्वरमां मळी गयुं छे, अने परमेश्वर मन साथे मळी गया छे; बंने
एकरस थईने रह्यां छे, तो हुं पूजानी सामग्री कोने चढावुं?
५०. हे जीव! तुं देवनुं आराधन करे छे;–पण तारा परमेश्वर क्यां चाल्या गया? जे
शिव–कल्याणरूप परमेश्वर सर्वांगमां बिराजी रह्या छे तेने तुं केम भूली गयो?
५१. अहो, जे पर छे ते तो पर ज छे; पर कदी आत्मानुं थतुं नथी. शरीर तो दग्ध
थाय छे; ने आत्मा उपर जाय छे; ते पाछुं वाळीने जोतो पण नथी. (आ रीते
देह अने आत्मा सर्वथा जुदा छे.)
५२. हे मूढ! आ बधुंय (शरीरादिकनो संबंध) तो कर्मजंजाळ छे, ए कांई निष्कर्म
नथी. (अर्थात् स्वभाविक नथी.) देख, जीव चाल्यो गयो पण देह–कूटिर तेनी
साथे न गई.–आ द्रष्टांतथी बंनेनी भिन्नता देख.
५३. देहदेवळमां जे शक्ति सहित देव वसे छे, हे योगी! ते शक्तिमान शिव कोण छे?
एनो भेद तुं जल्दी गोती काढ.
५४. जे जीर्ण थतो नथी, मरतो नथी के उत्पन्न थतो नथी, जे बधाथी पर, कोई
अनंत छे, त्रिभुवननो स्वामी छे ने ज्ञानमय छे,–ते शिवदेव छे–एम तुं
निर्भ्रान्तपणे जाण.