अने तेनुं फळ आनंद बंने एकसाथे ज छे. धर्म अत्यारे करे ने फळ पछी आवे–एम
भेद नथी. जे क्षणे सम्यग्दर्शन थयुं ते ज क्षणथी अतीन्द्रिय शांतिनुं वेदन थवा मांडे छे.
अने जे शुभाशुभ परिणाम छे तेनुं फळ सुखथी विपरीत एवुं दुःख छे. लोकोए
शुभरागने धर्म मानी लीधो छे, पण बापु! जेनुं फळ संसार अने दुःख–एने धर्म कोण
कहे? धर्म तो तेने कहेवाय के जे जीवने साक्षात् सुखमां स्थापे ने संसारथी उद्धार करे.
धर्मनी क्रिया छे ने ए ज तेनुं फळ छे.
पण आत्मानुं ज्ञ–स्वरूप आखेआखुं रहे छे. आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणतां धर्मीने
राग वगरनी जे ज्ञानचेतना प्रगटी ते निरंतर वर्त्या करे छे. आवी चेतना ते धर्मी–
आत्मानुं कर्म छे, तेना ते कर्ता छे, तेनुं फळ जे अनाकुळ लक्षण सौख्य छे ते पण आत्मा
ज छे; आत्माथी जुदुं नथी.
तो संसारनो मार्ग छे. भाई, तें जिनेश्वरदेवनो साचो मार्ग कदी जाण्यो नथी, एम ने
एम राग करीकरीने संसारमां ज तुं रखडयो छे. वीतरागनी वाणी तो मोहने तोडीने
मोक्षमार्ग खोलनारी छे.....वीतरागनो मार्ग ए तो शूरवीरोनो मार्ग छे.–(हरिनो
मारग छे शूरानो....)
धर्म केम कहेवाय? शुभाशुभभावो कर्मनी समीपतामां नीपजेला छे ने तेनुं फळ दुःख छे,
तेमां सुख नथी. अने चैतन्यभावरूप जे ज्ञानचेतना छे ते कर्म साथे संबंध वगरनी छे,
ते कर्मोथी दूर ने आत्मानी समीप छे; तेमां अतीन्द्रियसुख छे. स्वघरमां वास्तु