: महा : २५०१ आत्मधर्म : ३५ :
वीर नाथभगवानने जे वीतरागी उत्तम सदाचारो सम्यग्दर्शनादि बताव्या छे, सत्य
अहिंसा बताव्या छे–तेनी प्रतीत करीने उत्साहपूर्वक तेनुं पालन करवानो प्रयत्न
करजे. वीतरागी तत्त्वोनो खूब अभ्यास करजे. देहथी भिन्न आत्मतत्त्व केवुं छे?
आपणा पंचपरमेष्ठी (देव–गुरु) भगवंतो केवा महान छे! ते बराबर ओळखजे. तुं
गमे तेवी परिस्थितिमां हो तोपण अंतरनी खटक राखीने धर्मतत्त्वना अभ्यासमां
जराय ढीलो थईश मा.
(३) उत्तम आचरण: आपणा भगवान महावीर वीतराग......आपणे तेमनां संतान,
एटले आपणे वीतरागना संतान! वीतरागना संतानने शोभे एवा उत्तम
आचरणवाळुं जीवन राखजे. दुनियानी लोलुपताथी दूर रहेजे; कषायोना कलेशथी दूर
रहेजे. शांत–शांत जीवन राखजे. कोई साथे वेरनुं बीज अंतरमां राखीश नहि सर्वत्र
भ्रातृभावथी रहेजे.
(४) परस्पर प्रेम–सहकार: आजना जमानामां आ सौथी उपयोगी अंग छे; जेटली
तत्त्वज्ञाननी जरूर छे एटली ज धर्मवात्सल्यनी जरूर छे. साधर्मीनी शोभा माटे
ताराथी जे कांई थई शके ते बधुंय करजे. सहन करवानो प्रसंग आवे तो सहन
करजे, पण कोई साधर्मीथी खोटुं लगाडीने कुसंप वधारीश नहीं. समाजमां पण
सहकारथी साथे रहेवामां जैनसमाजनी शोभा छे. युवानो! तमे श्वेताम्बरमां हो के
दिगंबरमां हो,–जो तमे युवानपेढी देश–काळनी परिस्थितिनो विचार करीने सद्बुद्धि
वापरीने संपथी रहेशो तो एकंदर बंने पक्षने फायदो ज थशे, ने अरस–परस प्रेम–
वात्सल्य–सहकारथी जैनसमाज शोभशे. आपणे अंदरोअंदर झगडीए, तेमां करोडो
रूपिया खरचीए–वरसो सुधी हेरान थईए–ने आपणो न्याय कोई त्रीजा अन्यमती
लोको करे–ए तो शरमावा जेवी वात छे! शांतिमां ज मजा छे, लडवामां मजा नथी–
भले विजय थाय तोपण!
(५) स्वराज्य लेवा माटे गांधीजीना जमानामां देशदाझवाळा लोको गाता के–
डंको वाग्यो लडवैया शूरा जागजो रे....
आजे महावीर–निर्वाणना २५०० वर्षींय महोत्सव प्रसंगे, मोक्षनुं राज्य लेवा माटे
मोक्षार्थी जैनयुवानोने हाकल पडी छे के–
अवसर आव्यो जैनबंधु तमे जागजो रे...
डंको वाग्यो...महावीरने मारग आवजो रे...
तोडी पाडो....अनादि मिथ्या भावने रे...डंको वाग्यो
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माथुं मेलो....ओळखवा आत्मभावने रे...डंको वाग्यो०
[शेष भाग पृष्ठ–३३ उपर]