: ३४ : आत्मधर्म : महा : २५०१
तमारी महान शक्तिना उत्तम उपयोगनो सुअवसर
[सम्पादकीय]
हमणां गुजरातना युवानोए राजक्षेत्रे पराक्रम करी बताव्युं....युवानो धारे तो शुं करी
शके छे! तेनी जगतने प्रतीति थई..–जैनबंधुओ! जैनयुवानो! आपणे तो महावीरप्रभुना
सन्तान छीए; आपणे तो जैनशासन माटे, एटले के आपणा पोताना हितने माटे घणुं
महान कार्य करवानुं छे, अने ते माटे अत्यारे सुअवसर आव्यो छे.
* आपणा भगवान महावीर मोक्ष पधार्या तेना अढीहजारवर्षनी पूर्णतानो भव्य
उत्सव अत्यारे आपणे उजवी रह्या छीए. आपणा जीवनमां आवेला आ महान उत्सवमां
तमे जे कांई करवा धारो ते करी शको छो. तमारी वीरता बताववा माटे जैनशासननुं मेदान
खुल्लुं छे. आवो, तमारी महान शक्तिने कामे लगाडो....शासनना उत्तम अने महान कार्यो
करवा माटे अमे तमने आह्वान आपीए छीए. जोईए तो खरा के वीरना सन्तान थईने
शासनना कार्योमां तमे केवीक बहादुरी बतावी शको छो!
* तमे कहेशो, के तमारी वात सांभळीने अमने चानक चडे छे; शासन माटे अमे
जरूर कंईक करी बताववा मांगीए छीए.–पण अमारे करवुं शुं!–तेनी सूझ पडती नथी. कहो,
–अमने बतावो–अमारे शुं कार्य करवानुं छे? एकवार अमने कार्य सोंपो ने मार्ग चींधो,–
पछी जोई ल्यो अमारो सपाटो ने झपाटो!
* ‘वाह युवान वाह! ’ तारी वीरता जागती देखीने आनंद थाय छे. तारे कांईक
करवुं ज छे ने!–तो सांभळ! वीरशासनना वीरपुत्र तरीके तारा हित माटे तारे शुं करवानुं छे
–ते तने बतावुं छुं:–
(१) पहेलांं तो हृदयमां ए वात कोतरी राख के, हुं वीरनो संतान छुं एटले वीरप्रभुना
जैनमार्गमां हुं चालीश; वीरना मार्गने छोडीने बीजा कोई मार्गमां जईश नहि. मारुं
आचरण, रहेणी–करणी–न्यायनीति, बधुं एवुं राखीश के जे वीरमार्गमां शोभे.
जगतनी खोटी पंचातमां पडीश नहि; आत्महित माटे वीरना मार्गे ज आगळ वधीश.
(२) तत्त्वअभ्यास: जीवादि तत्त्वोनुं जे स्वरूप भगवान महावीरे जैनसिद्धांतमां बताव्युं
छे तेनो अभ्यास करजे,–केमके ते सुखी जीवननुं मूळ छे. जैनशासनमां