Atmadharma magazine - Ank 376
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २५०१ आत्मधर्म : ३७ :
तीर्थराजनी उल्लासभरी यात्रा; महावीर–धर्मचक्रनुं आगमन

वीर सं. २५०१ माह सुद बीजथी पांचम सुधी गीरनार सिद्धक्षेत्रनी
तळेटीमां पू. श्री कहानगुरुनी मंगलछायामां अनेक उमंगभर्या उत्सवो
थया. नेमप्रभुनी प्रतिष्ठा थई,–नुतन मानस्तंभमां जिनबिंब स्थापन थयुं;
सहस्रआम्रवन तथा पंचमटूंकनी तीर्थयात्रा थई; महावीर धर्मचक्रनुं सातसो
यात्रिकोना संघसहित आगमन थयुं, जैनशासनना सारभूत ‘ज्ञायकभाव’
ना रणकारथी गीरनारपर्वत गुंजी ऊठ्यो. सर्वप्रकारे आवुं
धार्मिकवातावरण देखीने एवी ऊर्मि जागती हती के वाह रे वाह! संतोनी
साधनाभूमि तनेय धन्य छे!–वाह गीरनार वाह! (–ब्र. ह. जैन)


माह सुद बीजनी सवारमां गुरुदेव साथे भावभीना चित्ते नेमिनाथप्रभुने याद
करतां करतां कल्याणकधाम गीरनारमां आव्या....नेमप्रभुनी वेदीप्रतिष्ठानो मंगल
उत्सव चाली रह्यो हतो. मंगल स्वागतविधि बाद नेमप्रभुना भावभीना दर्शन कर्या.
पछी श्रीमंडपमां मंगल संभळावतां गुरुदेवे कह्युं के सर्वज्ञस्वभावी आत्मा छे, ते
सर्वज्ञस्वभाव नेमिनाथे आ गीरनार भूमिमां खोल्यो, ने दिव्यध्वनि वडे जगतने
बताव्यो. एवा स्वभावनी श्रद्धा करतां पोताने सम्यग्दर्शन अने आनंदरूप साधकदशा
प्रगटी ते अपूर्व मंगळ छे. सम्यग्दर्शन ते सिद्धपदनी तळेटी छे, ते ज सिद्धक्षेत्रनी
यात्रानो साचो प्रारंभ छे, भगवान नेमिनाथ अने बोंतेर करोड–सातसो मुनिवरो
अहींथी सिद्धपद पाम्या, तो स्मरणरूप आ यात्रा छे.
शुभ–अशुभ कषायभावो दुःख छे, तेनाथी पार शांतस्वरूप चेतना छे; अहो!
आवा स्वभावनी ज्ञानकळा प्रगटी त्यां मोक्षनो उत्सव शरू थयो. सम्यग्दर्शन कर्युं ते ते
जीव मोक्षनी तळेटीमां आवी गयो. अहींथी नेमप्रभु मोक्ष पधार्या छे ने आ तेनी तळेटी
छे. सम्यग्दर्शन करीने जे मोक्षनी तळेटीमां आव्यो तेने हवे मोक्षधाममां पहोंचतां
झाझीवार नहीं लागे. अहा, जेनी तळेटीमां आवतां पण अपूर्व आनंदनो