: ४० : आत्मधर्म : महा : २५०१
रह्या छीए–त्यारे भाव पण तेवा ज पवित्र थाय छे...अने भावनी पवित्रता ते ज
उत्तम तीर्थयात्रा छे.
हवे सहस्रआम्रवनमां श्रीगुरु साथे नेमप्रभुना चरणे बेठा छीए...प्रभुना
वैराग्यधाममां ने केवळज्ञानना धाममां गुरुदेव साथे अनेरा ज्ञान–वैराग्यना भावो
जागे छे; गुरुदेव प्रमोदथी नेमप्रभुने वारंवार याद करे छे के अहीं ज भगवाननुं
समवसरण हतुं. ‘बालब्रह्मचारी जिणंदपदधारी... ’ ए स्तवन गवडाव्युं हतुं; पछी पू.
बेनश्री–बेने पण उल्लासथी भक्ति करावी हती.....सहस्रआम्रवननुं वातावरण ज कोई
अनेरुं छे. त्यांनी यात्रा करीने जिनमंदिरमां (पहेली टूंके) नेमप्रभुनी भावभीनी
भक्ति करी. घणा यात्रिको पहेली टूंके ज रात रोकाया; गीरनार उपरनी कडक ठंडी वच्चे
पण नेमप्रभुना गुणस्मरणवडे आखी रात पसार करी...क्यारे सवार पडे ने क््यारे
पंचम टूंक पर जईने सिद्धक्षेत्रनी यात्रा करीए–एवी उत्सुकताथी यात्रिको ऊंघ्या पण
नहीं. सवारमां पांचमी टूंके पहोंची गया...नेमप्रभुनी मूर्ति पहाडमां कोतरेली छे तेनी
सन्मुख भक्तिभावथी अर्ध चडाव्यो. आ टूंके जोके नेमप्रभुना चरणपादूका बिराजे छे
परंतु देशकाळअनुसार आजे तेनी व्यवस्था आपणा हस्तकमां रही नथी. छतां ते
आपणने आपणा नेमनाथ प्रभुना मोक्षनुं स्मरण तो करावे ज छे.–आपणा प्रभुने
आपणा हृदयमांथी कोई दूर करी शके तेम नथी. पांचमी टूंकनी यात्रा करीने पहेली टूंके
जिनमंदिरमां अभिषेक थयो. प्रथम अभिषेकनी बोली छोटालाल डामरदासभाईनी
पुत्रीओए लीधी हती, ने कहान गुरुना मंगलहस्ते जिनेन्द्रअभिषेकनो प्रारंभ थयो
हतो. गीरनार उपर आवो जिनेन्द्रअभिषेक देखीने सौने आनंद थयो हतो. घणा
यात्रिको चोथी टूंक (प्रद्युम्नसिद्धिधाम) नी यात्राए पण गया हता. अहीं पर्वतमां ज
जिनमूर्ति कोतरेली छे–जे बराबर पंचमटूंकनी मूर्ति जेवी छे. तथा चरणपादुका पर्वतमां
कोतरेला छे. चोथी अने पांचमी टूंकनी एकसरखी रचना देखीने ख्याल आवी जाय छे के
आ बंने रचना एक ज वखते थयेल छे. बराबर एवी बीजी बे जिनमूर्ति पर्वतना
जुदाजुदा भागमां (एक त्रीजी टूंक पछी पांचमी तरफ जतां रस्तामां डाबी तरफ, अने
बीजी नीचेथी पहेली टूंके जतां पोणाभाग पछी जमणी तरफ) छे; बीजी मूर्ति उपर सं.
१४ एम कोतरेल छे.
आनंदपूर्वक महान तीर्थधामनी यात्रा करीने, गुरुदेव साथे पू. बेनश्री–बेननी
विधविध भक्ति झीलता...झीलता नीचे आवी पहोंच्या अने नेमप्रभुना जय–
जयकारपूर्वक यात्रा पूर्ण थई.