Atmadharma magazine - Ank 377
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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* आत्मामां धर्मचक्र चालु करो *
दुःखथी थाकेलो ने अंदरथी धा नाखतो जिज्ञासु जीव
अतीन्द्रिय आनंदनो तीव्र चाहक बन्यो छे. तेने संसारनो
कलबलाट छोडी अंतरमां आत्मप्राप्तिनुं एक ज ध्येय छे.
दुनियाना कोलाहलथी कंटाळेलुं तेनुं चित्त आत्मशांतिने
नजीकमां देखीने ते तरफ एकदम उल्लसे छे. जेम माताने
तलसतुं बाळक माताने देखतां आनंदथी उल्लसे छे ने दोडीने
तेने भेटी पडे छे, तेम आत्मा माटे तलसतुं मुमुक्षुनुं चित्त
आत्माने देखीने आनंदथी उल्लसे छे ने जल्दी अंदरमां जईने
तेने भेटे छे. ते मुमुक्षु बीजा ज्ञानीओनी अनुभूतिनी वात
परम प्रीतिथी सांभळे छे: अहो, आवी अद्भुत अनुभूति!–
आम परम उत्साहथी ते पोताना स्वकार्यने साधे छे. तेना
आत्मामां धर्मचक्र चालु थाय छे.
साधर्मीओ! वीरनिर्वाणना आ अढीहजारवर्षीय
महान उत्सवमां आवी मंगलमय ज्ञानदशा प्रगट करीने
आत्मामां धर्मचक्र चालु करो, ने महावीरप्रभुना मार्गमां
आवी जाओ.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २५०१ फागण (लवाजम : छ रूपिया) वर्ष ३२ : अंक ५