फोन नं. : ३४ “ आत्मधर्म ” Regd. No. G. B. V. 10
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असार...असार रे संसार!
सुनो सुनो रे संसार
असार असार रे संसार...
चेतनपद एक छे सार,
सुंदर जेमां शांति अपार.
लडतां–लडतां हारेला भरतचक्रवर्तीए पोताना भाई उपर चक्र छोड्युं...
चारेकोर हाहाकार थई गयो....पण, जेम शांति पासे क्रोधनुं कांई चालतुं नथी तेम,
ते चक्र चरमशरीरी बाहुबलीने कंई पण न करतां, शांत थईने पाछुं चाल्युं गयुं...
चक्र तो गयुं पण, युद्धना वातावरणमां तरत ज एक महान परिवर्तन
थई गयुं.
विजेता बाहुबलीनुं चित्त ते ज क्षणे संसारथी विरक्त थई गयुं:
वैराग्यथी तेओ विचारवा लाग्या–अरे, आ संसार केवो असार छे! जेमां
पृथ्वीना एक टुकडा माटे के मान–अपमान माटे भाई–भाई ने मारवा पण
तैयार थई जाय छे. अरे, क््यां चैतन्यतत्त्वनी परम शांति! ने क््यां आ
कषायनी अशांति! बस, हवे आवा अशांत संसारमां मारे एकक्षण पण रहेवुं
नथी. हुं मारा चैतन्यनी अतीन्द्रिय शांतिमां ज रहीश...ने मोक्षपदने साधीश.
बस, आवा वैराग्यथी संसार छोडीने बाहुबली गया ते गया! एक
प्रकाशक: श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र) फागण
मुद्रक: मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय, सोनगढ (सौराष्ट्र) प्रत ३६००