Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 83

background image


सर्वज्ञमहावीर–के जेओ आपणा भरतक्षेत्रमां वर्तमान
चाली रहेला मोक्षमार्गरूप धर्मतीर्थना प्रणेता छे, जेमना तीर्थमां
आपणने धर्मनी प्राप्ति थई छे, –ते परमेश्वरना परमउपकारने
प्रसिद्ध करवानो अत्यारे महान प्रसंग छे. तेथी ते
सर्वज्ञमहावीरना महान गुणोने ओळखीने तेमना गुणगान
वडे तेओश्रीनो महान उपकार प्रसिद्ध करीए छीए. प्रभुना
जन्मोत्सव प्रसंगे आ खास अंकद्वारा हृदयनी उर्मिओथी
तेओश्रीने अभिवंदीए छीए.
मोक्षरूप महा सुखनी जेनाथी प्राप्ति थाय एवा सम्यग्दर्शन
–ज्ञान–चारित्र ते धर्मतीर्थ छे, ते तीर्थवडे भवसमुद्रथी तराय छे.
भगवान महावीर एवा धर्मतीर्थना कर्ता छे. पोताना आत्माने
तो शुद्धोपयोगरूप परिणमावीने पोते भवथी तर्या छे, ने तेमना
तीर्थने पामीने आपणे भवने तरी रह्या छीए.
अहो, वर्द्धमानदेव! आपनुं आवुं मंगल तीर्थ
विपुलाचलथी वहेतुं–वहेतुं आजे अढीहजारवर्षथी भारतदेशमां
सर्वत्र चाली रह्युं छे ने ते तीर्थमां स्नानवडे मिथ्यात्वमेल
धोईने आनंदरसना पानथी अनेक जीवो पावन थया छे.
हे वीरनाथ–सर्वज्ञदेव! आपना उपकारने अमे केम
भूलीए? आपनी परंपराथी आवी रहेलुं, आपनी सर्वज्ञताना
प्रसादरूप सम्यग्ज्ञान आजेय अमने भवदुःखोथी छोडावीने
अपूर्व मोक्षसुखनो स्वाद चखाडे छे; ते सर्वोत्कृष्ट उपकारनी
प्रसिद्धिनो महान अवसर आजे आपना अढीहजार वर्षीय
निर्वाणमहोत्सव प्रसंगे अमने प्राप्त थयो छे. त्यारे अंतरनी
लाखलाख उर्मिथी आपने अभिवंदीए छीए.
[ब्र. हरिभाई द्वारा लखाई रहेल पुस्तक “सर्वज्ञमहावीर अने
तेमनो ईष्ट उपदेश”] मांथी