Atmadharma magazine - Ank 378
(Year 32 - Vir Nirvana Samvat 2501, A.D. 1975)
(Devanagari transliteration).

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जे जाणतो महावीरने चेतनमयी शुद्ध भावथी,
ते जाणतो निजात्मने समकित ल्ये आनंदथी.
* छ कारकोनी स्वाधीनताथी शोभतो *
समयसारनी ४७ शक्तिओमां आत्माना छ कारकोनुं
घणु सरस वर्णन आचार्यदेवे कर्युं छे. पोतानी निर्मळ
सम्यक्त्वादि क्रियाना कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान
अने अधिकरण–ए छए कारकोरूपे पोते ज स्वाधीनपणे
परिणमतो थको, आ चैतन्यचक्रवर्ती स्वतंत्र प्रभुताथी
शोभे छे. चक्रवर्तीनुं राज पण जेनी पासे तद्न तुच्छ छे–
एवुं आ चैतन्य–चक्रवर्तीपणुं छ कारकोना प्रवचनमां
अद्भुतपणे गुरुदेवे ओळखाव्युं छे. ए प्रवचनोना
रत्नाकरमांथी ८६ रत्नो वीणीने गूंथेली आ ८६ रत्नोनी
मंगळमाळा वीरप्रभुना जन्मोत्सव प्रसंगे सहर्ष रजु
करवामां आवी छे.
(ब्र. ह. जैन)