: चैत्र: २५०१ आत्मधर्म : १ :
* आत्महितने माटे हंमेशा वीतरागशास्त्रनुं वांचन करीश. *
१. स्वाधीन छ कारकोवडे स्वयमेव सर्वज्ञ थईने जेओ सिद्धपद पाम्या अने
आपणने पण एवुं ‘स्वयंभू’ निजपद देखाडयुं–ते वीरनाथ जिनने वंदन हो.
२. जेणे धर्म करवो छे एटले आत्मानी शांति जोईए छे तेने ते पोताना
आत्मामां द्रष्टि कर्ये ज मळे तेम छे, क््यांय बहारथी मळे तेम नथी. शांति
ज्यां भरी होय त्यांथी ज मळेने!
३. आत्मानी शांति–सुख के आनंद आत्मामां ज भर्यो छे, बहारमां नथी;
अने ते प्रगट करवानुं साधन पण क््यांय बहारमां नथी; साधन पण
पोतामां ज छे.
४. अरे जीव! तारो आत्मा ‘स्वयंभू’ छे; तारुं केवळज्ञान वगेरे थवाना
छए कारको तारामां ज छे; स्वभावनुं अवलंबन करतां तारो आत्मा
स्वयमेव छ कारकरूप थईने केवळज्ञानपणे प्रगट थशे.
५. स्वसन्मुख थईने ज्यां आत्मा निर्मळज्ञानपणे परिणम्यो, त्यां ते ज्ञान–
परिणमनमां आनंद, प्रभुता वगेरेनी जेम कर्तापणुं; कर्मपणुं, करणपणुं,
संप्रदानपणुं, अपादानपणुं ने अधिकरणपणुं–एवा छ कारकोनुं परिणमन
पण भेगुं ज छे.
६. आत्माना निर्मळ परिणमनमां बहारना कोई कारको छे ज नहि, रागना
कारकोनो पण तेमां अभाव छे. पोतानी निर्मळपरिणतिरूप क्रियाना छए
कारकरूपे आत्मा स्वयमेव थाय छे, तेथी ते ‘स्वयंभू छे.
७. भाई, तारा चैतन्यमां ज संपूर्ण ताकात भरी छे, तेनो विश्वास लावीने,
तेमां तारी नजर ठेरव; बीजे क््यांय नजर ठरे तेम नथी. तारा निधान
तो तारामां ज छे; तेनी सुंदरता अद्भुत छे.
८. सम्यग्दर्शन के केवळज्ञान वगेरे कार्यरूपे थाय–एवी शक्ति आत्मामां ज
छे, आत्मा पोते ज ते सम्यग्दर्शनादि कार्यरूप परिणमे छे;–पण राग
परिणमीने सम्यग्दर्शनादिरूप थाय–एम बनतुं नथी. केमके निर्मळकार्यरूपे
थवानी शक्ति आत्मानी छे, रागनी नहि.